35

#शिक्षानीति: ज़रूरत हैं नॉलेज ज़ोन की

भारत को यदि वैश्विक पटल पर अपनी भूमिका का निर्वाह करना है, तो स्पष्ट है कि हम विश्व स्तरीय हों भी. 21 वीं शती के उत्तरार्ध तक आते आते विश्व एक knowledge world में परिवर्तित हो चुका होगा और जो भी देश इस मापदण्ड पर सफल होंगे, उनका ही लीग विश्व के अन्य देशों को लीड करेगा.

Knowledge world से तात्पर्य है कि सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल प्रोडक्ट पर knowledge (ज्ञान) की स्पष्ट छाप दिखेगी. और भारत की वर्तमान तैयारी उसे अगले 200 वर्षों में कहीं नहीं पहुंचाएगी.

भारत को भ्रस्टाचार नाम का जो प्रेत पकड़े है उसकी भी मुक्ति का साधन इसी ज्ञान में है और हम उसका समाधान ढूंढ रहे हैं CVC, Anti Corruption Cell और IPC की धाराओं में - क्या इसमे कोई कमी आयी या उत्तरोत्तर ये बढ़ा ही?

32

#शिक्षानीति: कुछ कही, कुछ अनकही

शिक्षा नीति केवल रोज़गार सृजन, व्यावसायिक या जीवन यापन के योग्य बनाए - तो ये शिक्षा की सबसे निचले स्तर की उपादेयता है.

शिक्षा तो liberating force है - इसमे आपको मुक्त करने की क्षमता है - चाहे भूख से, अज्ञानता से, परवशता, बेरोजगारी से, मानसिक बंधन से - यूँ कहें कि बंधन चाहे कुछ भी हो, शिक्षा बंधन मुक्त भी करती है और बांधती भी है - आपको दायित्व से, जिम्मेदारी से, संस्कार से, सरोकार से, राष्ट्रीय गौरव से जोड़ती है.. यदि ये नहीं कर रही है, तो चाहे ये जो कुछ भी है ज्ञान तो कतई नहीं है।

आप पीढ़ियों को इतना जरूर सिखाएँ कि पूर्वजों ने किन परिस्थितियों में, किन किन क्षेत्रों में शीर्ष को छुआ, कैसी कैसी उपलब्धियां हासिल कीं और फिर किन विपरीत परिस्थितियों में सारा ध्वस्त हुआ - क्यों, किनके द्वारा और किस तरह ये ध्वस्त किए गए. यदि सम्वेदना के साथ आने वाली पीढ़ी उसको समझ पाये, तो अपने अतीत से प्रेरणा लेकर ना सिर्फ खोई विरासत को जान पाएंगे ब्लकि उस उपलब्धी को अगले आयाम तक पहुंचाने का संकल्प लेंगे.

14

#आपदा प्रबंधन: बिहार मॉडल

बिहार में जन्म हुआ, यहीं पढ़ा-लिखा, बड़ा हुआ, अनुभव प्राप्त हुआ. लगभग पाँच दशकों की उम्र में आते आते इस शब्द "आपदा-प्रबंधन" का गूढ़ अर्थ समझ पाया.

कुछ सन्दर्भों को आपके समक्ष रख रहा हूँ :

1) जब से बड़ा हुआ, देखने समझने लायक हुआ, तब से देख रहा हूँ कि वर्षा के शुरू होते ही दियारा क्षेत्र के लोग मवेशियों, घर गृहस्थी समेटकर, किसी भी मुख्य सड़क, सरकारी स्कूल, कॉलेज ये खाली पड़ी जगहों पर अस्थायी रूप से 5-6 महीनों के लिए खाना-बदौश की तरह बस जाते हैं और फिर गंगा, कोसी, गंडक नदियों और उप-धाराओं के पानी उतरने के बाद वापस लौट जाते हैं अपने पुराने परिवेश में. ये सारा कुछ वो अपनी समझदारी, अपने संसाधन, अपनी मेहनत, अपनी दूरदर्शिता के आधार पर करते हैं, बिना किसी सरकारी आपदा प्रबंधन के.