खुली हवा, शांत आसमान किसे नहीं भाता लेकिन मानव गतिविधियों ने पर्यावरण में जहर घोल कर इसे असंतुलित कर दिया है। पर्यावरण अंसतुलन के बहुत से नुकसान हैं।
आखिर क्या है यह पर्यावरण असंतुलन?
हमें प्रकृति ने जीवन के लिए पर्याप्त वस्तु एवं साधन प्रदान किए हैं चाहे वे हवा, पानी, आग, धरा एवं आकाश जैसे पंचतत्व हो या फिर रहन-सहन के लिए रोटी, कपड़ा और मकान। प्रकृति में इस धरती की हर एक प्रजाति का संपूर्ण भार उठाने की क्षमता है परंतु मनुष्य की स्वार्थी कार्ययोजनाओं के कारण प्रकृति अब यह क्षमता धीरे-धीरे खो रही है। प्रकृति में आए इसी असंतुलन को पर्यावरण असंतुलन कहते हैं।
5 जून को मनाया जाता है विश्व पर्यावरण दिवस
हर वर्ष 5 जून को विश्व भर में मनाया जाता है पर्यावरण दिवस। 1974 में शुरू हुए इस एक दिवसीय पर्व को संपूर्ण विश्व में उत्साह के साथ मनाया जाता है और इस दिन कई सारे पर्यावरण संबंधी विषयों पर जागरूकता भी फैलाई जाती है। इस वर्ष कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से कई सारे कार्यक्रम रद्द तो हुए हैं परंतु विश्व भर में कई संगठन एवं संस्थाएं ऑनलाइन कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है जिससे लोगों को प्रकृति के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौतियों से अवगत कराया जाए और इसमें सबसे बड़ी समस्या है पर्यावरण असंतुलन।
कैसे होता है पर्यावरण में असंतुलन?
पर्यावरण असंतुलन का मुख्य कारण है मानव की बढ़ती जनसंख्या और उसके साथ बढ़ती हुई उसकी स्वार्थी गतिविधियां। अभी पूरे विश्व में मनुष्य की जनसंख्या 7.8 अरब पहुंचने वाली है जोकि बाकी सभी प्रजातियों के मुकाबले काफी ज़्यादा है। प्रकृति ने मानव को सबसे सुंदर उपहार भेंट किया है जो मानव की परिस्थिति के साथ विकसित होने वाली बुद्धि है। इस बुद्धि से मानव यदि चाहे तो वह संसार में हर नामुमकिन को मुमकिन कर सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मानव ने ऐसा ना किया हो; वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में मानव आकाश की ऊंचाइयों को छू चुका है। मानव हर दिन विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। परंतु उस विकास की ओर आगे बढ़ते हुए वह प्रकृति और पर्यावरण को भूल चुका है। जिस प्रकृति को मां मानकर पूजा जाना चाहिए उसे नजर-अंदाज किया जा रहा है।
इस असंतुलन के क्या-क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं?
मानव के अंधाधुंध विकास के प्रयासों के कारण आज समस्त विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन, ओज़ोन परत विलोपन, जानलेवा प्रदूषण जैसे असुर खड़े हो चुके हैं। हम जिस प्रकार प्रकृति को अनदेखा कर विकास की ओर जा रहे हैं उससे कुछ दशकों उपरांत हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां इस पृथ्वी पर कई पौधों अथवा पशु-पक्षियों की प्रजातियों को नहीं देख पाएंगी।
कैसे बनाएं पर्यावरण को फिर से संतुलित?
आमतौर पर प्रकृति के पास खुद को स्वतः पुनर्जीवित करने की क्षमता होती है परंतु जब मानवीय गतिविधियों का दुष्प्रभाव सभी सीमाओं को लांघ जाता है तो फिर प्रकृति भी एक कदम पीछे की ओर चली जाती है।
इसलिए हमें दूरदर्शी बनकर अपने साधनों का इस्तेमाल करना है और सतत विकास की ओर अग्रसर होना है। उदाहरण के लिए जब एक शेर हिरणों के झुंड पर हमला करता है तो वह पूरे झुंड को नहीं मारता बल्कि केवल उस एक हिरण को मारता है जिससे उसके कुछ दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जाए। इसके पीछे की सोच होती है कि भविष्य के लिए हिरणों (भोजन) को बचाए रखना। तो अगर एक शेर इतनी आगे की सोच रख सकता है तो हम क्यों नहीं?
जलवायु परिवर्तन एवं एल नीनो इफेक्ट जैसे बड़े संकटों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों को चाहे वे विकसित हो या फिर विकासशील मिलकर काम करना होगा। क्योटो संधि एवं मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जैसे कई और अधिनियम लाने की आवश्यकता है। कई बार यह भी देखा जाता है कि विकसित देश स्वयं द्वारा की गई प्रकृति की दुर्दशा के लिए विकासशील देशों को ज़िम्मेदार ठहरा देते हैं। परंतु यहां पर यह समझने की बात है की अगर कोई भी प्राकृतिक आपदा आती है तो वह विकास की दर देखकर नहीं आएगी! तो ज़रूरत है एक साथ कदम बढ़ने की।
पर्यावरण को वापस संतुलन में लाने के लिए जहां पर एक तरफ अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा उचित कदम उठाए जाने चाहिए वही व्यक्तिगत स्तर पर हर व्यक्ति भी अपना योगदान दे सकता है। कुछ ऐसे तरीके भी हैं जिनसे प्रकृति को वापस मनभावन बनाया जा सकता है जैसे कि अपने स्वजनों को जन्मदिवस या किसी भी शुभ अवसर पर पौधा भेंट करना, यातायात के लिए निजी वाहन के बजाय सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करना, पुरानी किताबों और रजिस्टरों को कबाड़ में फेंकने के बजाय किसी ज़रूरतमंद को देना, अधिक से अधिक वस्तुओं को रीसाईकिल और पुनः उपयोग करना और प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करना। अगर समूचे विश्व में हर व्यक्ति इन सभी बातों को ध्यान में रखता है तो हम अवश्य फिर से पृथ्वी को मुस्कुराते हुए देख पाएंगे ।