शिक्षा नीति केवल रोज़गार सृजन, व्यावसायिक या जीवन यापन के योग्य बनाए - तो ये शिक्षा की सबसे निचले स्तर की उपादेयता है.
शिक्षा तो liberating force है - इसमे आपको मुक्त करने की क्षमता है - चाहे भूख से, अज्ञानता से, परवशता, बेरोजगारी से, मानसिक बंधन से - यूँ कहें कि बंधन चाहे कुछ भी हो, शिक्षा बंधन मुक्त भी करती है और बांधती भी है - आपको दायित्व से, जिम्मेदारी से, संस्कार से, सरोकार से, राष्ट्रीय गौरव से जोड़ती है.. यदि ये नहीं कर रही है, तो चाहे ये जो कुछ भी है ज्ञान तो कतई नहीं है।
आप पीढ़ियों को इतना जरूर सिखाएँ कि पूर्वजों ने किन परिस्थितियों में, किन किन क्षेत्रों में शीर्ष को छुआ, कैसी कैसी उपलब्धियां हासिल कीं और फिर किन विपरीत परिस्थितियों में सारा ध्वस्त हुआ - क्यों, किनके द्वारा और किस तरह ये ध्वस्त किए गए. यदि सम्वेदना के साथ आने वाली पीढ़ी उसको समझ पाये, तो अपने अतीत से प्रेरणा लेकर ना सिर्फ खोई विरासत को जान पाएंगे ब्लकि उस उपलब्धी को अगले आयाम तक पहुंचाने का संकल्प लेंगे.
पीढ़ियाँ यदि ये सीखती हैं कि सलमान, शाहरुख ने इतनी ल़डकियों से दोस्ती कर कैसे कैसे फ्लर्ट किया, फ्लां हिरोइन के इतने scandals के किस्से हैं - तो पीढ़ियां उसी क्षेत्र में प्रतिमान स्थापित करने का प्रयास करेंगे.
इसके विपरीत यदि उन्हें विस्तार से, प्रोजेक्ट फॉर्म में शंकराचार्य, बुद्ध, शिवाजी, लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप लीला वती, चरक, सुश्रुत, कालिदास, चाणक्य को पढ़ायेंगे, तो बड़ी उपलब्धियां प्रस्तुत होंगी.
ये भी सिखाना होगा कि शिक्षा - observation, analysis, perception, conclusion, rectification, practice का एक longterm continuous process है, जिसमें short cuts की कोई गुंजाईश नहीं है.
और शिक्षा passionate शिक्षकों के हाथ हो, जिन्हें पढ़ाने में रुचि हो, और उन्हें इतनी आमदनी जरूर हो कि उन्हें शिक्षक होने में गर्व और संतुष्टि - दोनों हो.
(लेखक एक शिक्षाविद हैं)