अपराजिता पूजा से मिलती है सफलता

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सकल सिद्धियों की अवतार देवी अपराजिता की विजयादशमी के दिन सभी माताओं की विदाई से पूर्व पूजा की जाती है। मां अपराजिता साक्षात देवी दुर्गा का अवतार हैं। शारदीय नवरात्र अपराजिता पूजन के बिना अधूरा माना जाता है। इस पूजा से साधक को सदैव सफलता प्राप्त होती है।  

जानें अपराजिता पूजा के बारे में

चारों युगों के प्रारम्भ से ही अपराजिता पूजन की जाती है। देवी अपराजिता की पूजा देवता भी करते थे। देवी अपराजिता को दुर्गा का अवतार माना जाता है और विजयादशमी के दिन मां अपराजिता पूजा की जाती है। मुख्य रूप से देवी अपराजिता की पूजा तब से शुरू हुई, जब देवासुर संग्राम में नवदुर्गाओं ने दानवों के संपूर्ण वंश का नाश कर दिया। तब मां दुर्गा अपनी मूल पीठ शक्तियों में से अपनी आदि शक्ति अपराजिता को पूजने के लिए शमी का घास लेकर हिमालय में अंतर्ध्यान हुईं। बाद में आर्यावर्त के राजाओं ने विजय पर्व के रूप में विजयादशमी की स्थापना की, जो नवरात्र के बाद प्रचलन में आया।

अपराजिता पूजा के विषय में एक अन्य धारणा भी प्रचलित है इसके अनुसार भगवान राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही राक्षस राज रावण से युद्ध करने के लिए विजयादशमी को प्रस्थान किया था। माना जाता है कि यात्रा के ऊपर माता अपराजिता का ही अधिकार होता है। तब से भारत वर्ष में अपराजिता देवी के पूजन का प्रचलन आरंभ हुआ। अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही रूप हैं।

शारदीय नवरात्र अपराजिता पूजन के बिना संपन्न नहीं होता. विजयादशमी के दिन माताओं को विदाई देने से पहले अपराजिता के नीले फूल से माता की पूजा कर अभय दान मांगा जाता है। मान्यता है कि विजयाकाल में अपराजिता पूजन करने से कभी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है, क्योंकि यह स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। अपराजिता के नीले फूल से देवी अपराजिता पूजन करने से अपराजित रहने का वरदान मिलता है। अपराजिता की लताओं को कलाई में बांधा जाता है। देवी अपराजिता के उपासना के बिना विजयादशमी पूजा एवं पर्व अधूरा माना जाता है।

खास जगह पर करें अपराजिता पूजा

अपराजिता पूजा करने के लिए घर के पूर्वोत्तर दिशा में कोई स्थान चुन लें। पूजा का स्थान किसी बगीचे या मंदिर के आसपास भी हो सकती है। पूजा के स्थान को साफ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र बनाएं। पुष्प तथा अक्षत के साथ अपराजिता की पूजा का संकल्प लें। 

मां दुर्गा की विदाई से पहले होती है अपराजिता पूजा 

ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं उन्हें विजयादशमी के दिन मां अपराजिता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। देवी अपराजिता की उपासना के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई से पूर्व अपराजिता के फूल से मां की पूजा कर उनसे अभयदाय मांगा जाता है। इस तरह की आराधना से देवी प्रसन्न होकर विजयी होने का आर्शीवाद प्रदान करती हैं। साथ ही बंगाल के कुछ हिस्सों में प्रतिमा विसर्जन से पहले सुहागिन औरतें मां दुर्गा को अपना सिंदूर अर्पित कर अक्षय सुहाग की कामना करती हैं। इस तरह विसर्जन यात्रा में महिलाएं सिंदूरखेला करती है। इस प्रकार दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के बाद श्रद्धालुओं पर जल का छिड़काव किया जाता है।

कैसे करें अपराजिता पूजा 

अपराजिता पूजा का मुहूर्त स्वयंद्धि मुहूर्त माना जाता है इसलिए इस मुहूर्त में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। यह दिन बहुत शुभ होता है इस दिन अपराजिता स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। अपराजिता के नीले फूल से देवी अपराजिता की पूजा करने से अपराजित रहने का वरदान मिलता है। अपराजिता की पूजा के बाद मांएं अपनी बच्चों की कलाई पर अपराजिता की बेल लपेटकर हमेशा उनके दीर्घायु होने का आर्शीवाद देती हैं। इसके बाद अपराजिता के फूलों को स्त्री और पुरुष अपने माथे पर लगाते हैं। इसे सौभाग्य का सूचक माना जाता है। 

अपराजिता पूजा का मुहूर्त

अपराजिता पूजा सामान्यतः दोपहर के बाद और सांयकाल से पहले की जाती है। यात्रा प्रारम्भ करने से पहले यदि अपराजिता देवी की उपासना की जाती है तो यात्रा हमेशा सफल होती है।  

 

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