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उत्साह से मनाया जाता है राखी का त्यौहार

भाई-बहन के प्यार का प्रतीक राखी का त्यौहार न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल ज्योतिषीय गणना के अनुसार रक्षाबंधन बहुत शुभ है तथा भाई-बहनों के लिए विशेष मंगलकारी होगा।

भाई बहनों के लिए लाभकारी होगा यह रक्षाबंधन

सालों बाद रक्षाबंधन पर शुभ संयोग बनने से भाई-बहन के लिए यह बहुत ही लाभकारी और सुख प्रदान करने वाले होगा। इसके अलावा राजयोग बनने पर खरीदारी करना भी अत्यंत शुभ होगा।

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कोरोना से संबंधित अफवाहों को रोकना और लोगों को विश्वास में लाना एक चुनौती थी, कहा स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व सलाहकार सत पाल ने

नई दिल्ली: वर्तमान की सूचना समाज में आम जीवन पर खबरों का प्रभाव समय के साथ बढ़ता ही जा रहा है इसलिए ‘रणनीतिक संचार’ का महत्व प्रशासनिक रूप से अधिक है और जब बात लोक स्वास्थ्य की हो तो यह और भी प्रासंगिक है। यह कथन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में पूर्व मीडिया सलाहकार रहे श्री सत पाल जी के हैं जो उन्होने विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ़ प्रोफ़ेशनल स्टडीज, नई दिल्ली में छात्रों से बात करते हुए कही। 

छात्रों के बीच ‘रणनीतिक संचार’ के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि 'जब कोरोना की यह स्थिति सामने आई तो इस चुनौती का सामना करते हुए हम इतने परिपक्व और अभ्यस्त हो गए कि ’रणनीतिक संचार’ के समक्ष यह चुनौती नज़र नहीं आई। 

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कोरोना से संबंधित अफवाहों को रोकना और लोगों को विश्वास में लाना एक चुनौती थी, कहा स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व सलाहकार सत पाल ने

नई दिल्ली: वर्तमान की सूचना समाज में आम जीवन पर खबरों का प्रभाव समय के साथ बढ़ता ही जा रहा है इसलिए ‘रणनीतिक संचार’ का महत्व प्रशासनिक रूप से अधिक है और जब बात लोक स्वास्थ्य की हो तो यह और भी प्रासंगिक है। यह कथन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में पूर्व मीडिया सलाहकार रहे श्री सत पाल जी के हैं जो उन्होने विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ़ प्रोफ़ेशनल स्टडीज, नई दिल्ली में छात्रों से बात करते हुए कही। 

छात्रों के बीच ‘रणनीतिक संचार’ के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि 'जब कोरोना की यह स्थिति सामने आई तो इस चुनौती का सामना करते हुए हम इतने परिपक्व और अभ्यस्त हो गए कि ’रणनीतिक संचार’ के समक्ष यह चुनौती नज़र नहीं आई। 

सत पाल छात्रों से करोनो की महामारी के दौरान रणनीतिक संचार की कौशलता पर व्याख्यान दे रहे थे। यह व्याख्यान विवेकानंद स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन द्वारा आयोजित 15 दिनों की ऑनलाइन समर ट्रेनिंग प्रोग्राम के प्रथम दिन हुआ था। 

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जनसंख्या नियंत्रण कानून पर है चर्चा जारी

आज़ादी के वक़्त भारत की स्थिति ठीक वैसी थी जैसी किसी अबोध बालक की हो जाती है जब वह किसी मेले मे खो जाता है। उस समय हमारे देश की आबादी केवल 34 करोड़ थी जिनका पेट भरने के लिए भी हम अन्य देशों पर आश्रित थे। भारत की साक्षरता दर मात्र 12%, जीडीपी 2.7 लाख करोड़ की ही थी। आज आज़ादी को 73 साल पूरे हो गए हैं और हमने कई क्षेत्र में तरक्की कर ली है, कहां हमें अनाज तक को आयात करना पड़ता था और कहां अब हम निर्यात करने की स्थिति मे आ चुके हैं। हमारी साक्षरता दर 74.04% हो गई है और 193 देशों में भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन इतने सालों बाद भी जो एक चीज़ हमारे विकास में बाधक बनी रही वह है हमारी बढ़ती जनसंख्या । 139 करोड़ आबादी के साथ भारत विश्व का दूसरा सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला देश बन चुका है और अगर एक्सपर्ट्स की मानें तो बहुत जल्द हम पहले स्थान पर आ जाएंगे।

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कांवड़ यात्रा पर जारी सियासी संग्राम

इन दिनों कांवड़ यात्रा चर्चा का विषय बना हुआ है। हर साल सावन के महीने में होने वाली कांवड़ यात्रा पिछले साल भी कोरोना महामारी के कारण नहीं हो पाई थी।

क्या है कांवड़ यात्रा?

कांवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने में निकाली जाती है। इसमें देश के विभिन्न कोनों से शिव भक्त हिस्सा लेते हैं। कांवड़िए लंबी यात्रा तय करके गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर अपने गावों और शहरों की ओर जाते हैं। मान्यता है की ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। फिर उनके आस-पास के शिव मंदिरों में उस गंगाजल से शिवाभिषेक होता है। कांवड़ यात्रा में, कांवड़ को लेकर पैदल अपना सफर तय करते हैं। इस बीच वे कांवड़ को नीचे भी नहीं रखते। खड़ी कांवड़ यात्रा के अलावा डाक कांवड़ या झांकी वाली कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है।