इन दिनों कांवड़ यात्रा चर्चा का विषय बना हुआ है। हर साल सावन के महीने में होने वाली कांवड़ यात्रा पिछले साल भी कोरोना महामारी के कारण नहीं हो पाई थी।
क्या है कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने में निकाली जाती है। इसमें देश के विभिन्न कोनों से शिव भक्त हिस्सा लेते हैं। कांवड़िए लंबी यात्रा तय करके गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर अपने गावों और शहरों की ओर जाते हैं। मान्यता है की ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। फिर उनके आस-पास के शिव मंदिरों में उस गंगाजल से शिवाभिषेक होता है। कांवड़ यात्रा में, कांवड़ को लेकर पैदल अपना सफर तय करते हैं। इस बीच वे कांवड़ को नीचे भी नहीं रखते। खड़ी कांवड़ यात्रा के अलावा डाक कांवड़ या झांकी वाली कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है।
क्या है पूरा विवाद?
कोरोना महामारी के चलते पिछले साल भी कांवड़ यात्रा नहीं हो पाई थी परंतु उस समय कोई विवाद नहीं हुआ था। ना ही हिंदू संगठानों एवं कांवडियों ने कोई प्रश्न उठाया था और ना ही राजनीतिक पार्टियों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया दी थी। इस साल स्थिति बिलकुल बदली हुई है। इस साल 25 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा के मुद्दे को लेकर राजनीति गरम है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।
मंगलवार,13 जुलाई 2021 को उत्तराखंड सरकार ने बयान दिया कि इस साल भी कोरोना महामारी के कारण कांवड़ यात्रा की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह फैसला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद लिया। जिसमे उन्होंने कोरोना के डेल्टा प्लस वेरिएंट और तीसरी लहर की आशंका के साथ-साथ विशेषज्ञों की राय को भी ध्यान में रखा। उत्तराखंड सरकार पहले ही कोरोना काल में कुंभ आयोजित कराने को लेकर भारी आलोचना झेल चुकी है।
विवाद तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ यात्रा को लेकर हुई बैठक में निर्देश दिए कि कांवड़ यात्रा की पूरी तैयारी कर ली जाए और साथ ही सभी कोरोना प्रोटोकॉल्स को भी ध्यान में रखा जाए व उनका पालन किया जाए। इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं संज्ञान लिया और राज्य सरकार से जवाब मांगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह खबर चिंताजनक है कि सरकार ने कांवड़ यात्रा की अनुमति दी है। प्रधानमंत्री ने भी कोरोना से निपटने के लिए सख्ती बरतने की जरूरत बताई है। मामला सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बाद भी यूपी सरकार अपने फैसले पर कायम रही और अपना फैसला वापस लेने के मूड में नहीं दिख रही थी क्योंकि आने वाले कुछ समय बाद 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव है और ऐसे में कांवड़ यात्रा हिंदुत्ववादी विचारधारा और एजेंडा वाली भाजपा को राजनीतिक फायदा पंहुचाएगी। कांवड़िए बड़ी संख्या में दिल्ली,हरियाणा, राजस्थान आदि से यूपी आते हैं और इसका सीधा प्रभाव यूपी की राजनीति पर पड़ता है।
16 जुलाई को यूपी सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील सी एस वैद्यनाथन ने कहा था कि यह मामला धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त टिप्पणी देते हुए कहा कि यह मुद्दा देश के सभी नागरिकों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है और धार्मिक भावनाएं जीवन के अधिकार से बड़ी नहीं हैं। इसलिए सरकार इस पर सोमवार,19 जुलाई तक खुद फैसला ले, अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय खुद फैसला जारी करेगा। ऐसा कहते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई को 19 जुलाई तक टाल दिया। अंततः 17जुलाई को उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा रद्द करने का फैसला लिया। बता दें कि उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों जैसे- उत्तराखंड, ओडिशा और दिल्ली की सरकारें भी 25 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा स्थगित करने का फैसला ले चुकी हैं।