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रिक्शों का कोई जबाब आज भी नहीं

मुझे रिक्शे बचपन से ही बहुत भाते हैं। उसके कोई कारण हैं। पहला, आप कुछ ढंग से देख पाते हैं अगर कुछ देखना चाहें तो, दुसरा, अगर आप सोचना चाहते हैं कुछ ख़ास विषय पे तो वो भी कर सकते हैं खुली हवा में सॉंस भरते हुए, और तीसरा कारण, आप सारे शहर की सोच भी पता कर सकते हैं रिक्शावाले से थोड़ी बातचीत करके। हमें महीं लगता है कि किसी और सवारी में सवार होकर आप कम समय में इतना फ़ायदा उठा सकते हैं। हाँ, एक बात सच है कि और सवारियाँ आपको अपकी झुठी मंज़िल पे मिनटों में अवश्य पहुँचा देंगीं। सोच के मैं बहुत दुखी होती हुँ कि ये सवारी अब विलुप्त होने के कगार पे जा चुकी है, छोटे-छोटे शहरों में भी।

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इतिहास गवाह है कि तिरंगे की रक्षा के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने समय-समय पर अपने प्राणों का बलिदान किया है।

वामपंथी-अलगाववादी जुगलबंदी के चलते जेएनयू में लगे देश विरोधी नारों पर जब  देशभर में आक्रोश उठ रहा था उसी समय कांग्रेस के युवराज इन नारों में आगामी विधानसभा चुनावों की हरी-भरी  सम्भावनाएँ तलाश रहे थे। इस चक्कर में वामपंथी धड़ों के साथ कदमताल करते विश्वविद्यालय परिसर जा पहुँचे और "भारत की बर्बादी तक जंग लड़ने" का ऐलान कर रहे जंगजुओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए। मीडिया के कैमरों की चकाचौंध ख़त्म होते-होते कांग्रेस के अंदर ये अहसास गहराने लगा कि राहुल की इस कलाबाज़ी के चलते कहीं पार्टी औंधे मुँह नीचे न आ जाए। लीपापोती पर विचार होने लगा और जब देश के सभी विश्वविद्यालयों में तिरंगा फहराने की बात आई  तो पता नहीं किसके निर्देश पर  कांग्रेस कार्यकर्ता देश में स्थान-स्थान पर संघ कार्यालयों पर तिरंगा  फहराने चल दिए।

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फैजल हसन कादरी का ताजमहल

 

बुलन्दशहर :  यूपी के आगरा में स्थित ताजमहल दुनिया भर में प्रसिद्ध  है जिसे शाहजहाँ ने अपनी  बेगम की याद में बनवाया था और इसे प्यार की सबसे बड़ी निशानी समझा जाता है |  यूपी के ही बुलन्दशहर जिले के केसर कला  गाँव मे हु बहू ताजमहल का नमूना है जिसे फैजल हसन कादरी नामक एक रिटायर्ड पोस्ट मास्टर ने अपनी बेगम तज्जमुली के इन्तकाल के बाद सन 2012  में  बनवाया था उनका निकाह 14 जून सन 1953 ई॰ मे उनके मामू की लड़की के साथ हुआ था |  

कादरी जी ने बताया की जब इनकी शादी हुई थी तो इनकी बेगम को ठीक से खाना पकाना नही आता था  तो कादरी जी ने ही इन्हें खाना पकाना सिखाया |  लेकिन कुछ ही दिनों में वो इतना अच्छा खाना बनाने लगी कि कादरी जी उनके खाने के दीवाने हो गये  और कादरी जी का यह भी कहना है कि इनकी बेगम पढ़ी लिखी नही थी वो कुरान तो पढ़ लेती थी लेकिन और कुछ नही पढ़