अख़बार में फ़्रान्स की एक आतंकवादी घटना पर प्रतिक्रिया के साथ हमारे और हमारी बेटी के बीच आज के धर्मनिरपेक्ष विचारो पर चर्चा हो चली। शायद यह मेरी ही गलती थी जो मैं फ़्रान्स के धर्मनिरपेक्ष नीतियों को हम अपने धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के साथ जोड़ कर देखने की कोशिश कर रहा था जो ‘सर्व धर्म संभाव’ के नज़रिये से देखता है। हर समाज और देश का नज़रिया धर्मनिरपेक्षता के बारे में अलग अलग है यह समझने के लिए हमें इस के मूल चार तरह की अलग अलग तरह की विवेचनाओं को समझना ज़रूरी है। ये सारी विवेचना, व्यक्ति, राज्य, समाज और इन तीनो का धर्म के साथ क़ानूनी तौर पर क्या रिश्ता हो, इसी बात पर निर्भर करता है। जॉर्ज होल्योके, जिसने पहली बार इन सिद्धांतों को राज्य की धर्म के मामले में निरपेक्ष होने के साथ जोड़ कर देखा था, वो भी शायद इस नीतिगत सिद्धांत के अलग अलग प्रैक्टिस और उसके अलग अलग परिणाम को पूरी तरह से बता नहीं पाये थे।
इस धर्मनिरपेक्षता को समझने के लिए ज़रूरी है की इस सिद्धांत की शुरुआत जिस परिस्थिति और जिस समाज में किस समय में हुआ है उसे भी समझें। तभी हम उस समाज और राज्य में आज की धर्मनिरपेक्षता के अवतरण को समझ सकते हैं। इसका पहला उदाहरण हम फ़्रान्स को ही लेते है जो अपने राज्य और समाज में धर्मनिरपेक्षता को एक नकारात्मक सोच की तरह लेता है और किसी भी राजकीय और सामाजिक मामले से धर्म को बिलकुल अलग कर देखता है। ऐसी स्थिति में यह राज्य किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह ही धार्मिक प्रतिकवाद की इजाज़त नहीं देता है। यहाँ किसी भी तरह की धार्मिक प्रतिकवादित जैसे हिजाब, टर्बन आदि को समाज और राज्य नकारात्मक तरीक़े से देखता है और राज्य इन धार्मिक सिम्बल का सामाजिक प्रदर्शन, वहाँ के विधि द्वारा कंट्रोल करता है। ऐसी स्थिति में राज्य का दायित्व, सामान्य जनता के मौलिक अधिकार ज़िनमे किसी भी तरह की निजी अभिव्यक्ति का अधिकार है, उसे सर्वोपरि मानते हुए, धार्मिक अधिकारों के उससे नीचे की श्रेणी में रखता है।