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तन-मन को सेहदमंद बनाए रखने के लिए रखें सावन के सोमवार का व्रत

सावन का पवित्र महीना शुरू हो गया है। हिन्दू धर्म में सावन के सोमवार को व्रत रखना अच्छा माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि व्रत रखना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि इससे आपका शरीर पर स्वस्थ रहता है तो आइए हम आपको सोमवार को व्रत रखने के कुछ खास तौर-तरीकों के बारे में बताते हैं। 

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#यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कौशाम्बी में प्रारम्भ हुई ऑफ-लेबल प्लाज्मा थेरेपी

गाज़ियाबाद: यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कौशाम्बी ने कोविड-19 के संक्रमित को बचाने के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल अब शरू कर दिया है । हालांकि आईसीएमआर ने भी इसे स्टैंडर्ड केयर ऑफ ट्रीटमेंट (गारंटी का इलाज) नहीं माना है, और इसे ऑफ-लेबल प्लाज्मा थेरेपी का नाम दिया है, परन्तु कुछ सूचनाओं के आधार पर कुछ मरीजों की जान इससे बची है। प्लाज्मा थेरेपी काफी पुरानी तकनीक है। पिछली सदी में जब स्पैनिश फ्लू फैला था तब इसका इस्तेमाल काफी कारगर साबित हुआ था। इस थेरेपी के तहत ठीक हो चुके मरीजों के खून से प्लाज्मा लेकर बीमार लोगों को चढ़ाया जाता है। ठीक हो चुके मरीजों के एंटीबॉडी से बीमार लोगों को रिकवरी में मदद मिलती है। इससे मरीज के शरीर में वायरस कमजोर पड़ने लगता है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 27 जून को अद्यतन किए गए ‘नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल’ के संबंध में ‘ इन्फोर्मेशन ऑन कॉन्वलसेंट प्लाज्मा इन कोविड-19’ शीर्षक से जारी किए नोटिस में कहा, ‘‘ यह भारत सरकार द्वारा जारी ‘नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल’ के संबंध में है, जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ थैरेपी का जिक्र अनुसंधानात्मक थैरेपी के तौर पर किया है, जिसमें प्लास्माफेरेसिस द्वारा कॉन्वलसेंट प्लाज्मा को कोविड-19 में ‘ऑफ-लेबल’ के रूप में इंगित किया गया है।’ ‘ऑफ-लेबल’ से यहां तात्पर्य, आधिकारिक रूप से सिद्ध ना होने पर भी किसी दवा या किसी थैरेपी का इस्तेमाल किसी बीमारी के इलाज के लिए करने से है।

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लॉकडाउन के बाद भी घर से निकलते समय रहें सावधान

कोरोना वायरस का बढ़ता संक्रमण एक चिंता का विषय है और न्यूज़ में दिखाए जाने वाले आंकड़े डरा देने के लिए काफ़ी हैं। कोविड-19 का इलाज ढूंढने में दुनिया के सभी वैज्ञानिक व डॉक्टर्स जुटे हुए हैं, पर अभी के लिए सावधानी ही इस बीमारी का एकमात्र उपाय है। हम सब बचपन से सुनते आ रहे हैं कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी और आज इस कहावत का सिद्ध रूप हमारे सामने है।

लॉकडाउन के बाद बहुत से ऑफिस, शापिंग काम्प्लेक्स, मॉल्स और दुकानें खुल गयी हैं ऐसे में रोज बाहर जाने वालों के साथ मुश्किल यह है कि वह बढ़ते संक्रमण से खुद को कैसे बचाएं।

घर से बहार निकलते समय,इन बातों का अवश्य ध्यान रखें:

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लॉकडाउन में मजदूर हुए बेहाल और रोजगार की राह नहीं आसान

सड़कों पर नंगे पैर, भारी गठरी लिए, कभी ट्रकों पर तो कभी बसों में और श्रमिक ट्रेनों में भर कर प्रवासी मजदूर अपने घर जा रहे हैं। घर तो जा रहे हैं लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, गांव जाकर उन्हें अपनी रोजी-रोटी के लिए एक बार फिर से लड़ना है। प्रवासी मजूदरों के सामने अपने गांव में भी रोजगार एक बड़ी समस्या है।

कोरोना वायरस महामारी के चलते देशव्यापी लॉकडाउन से करोड़ों श्रमिकों अथवा प्रवासी मजदूरों को बहुत से कष्ट झेलने पड़े हैं। रोज़ नए-नए भयावह चित्र के सामने आते हैं देश के श्रमिकों के लिए बनाई गई नीतियां के खोखलेपन को दर्शाती हैं। प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज का ऐलान तो किया परंतु इस राहत पैकेज से क्या मज़दूरों को सचमुच राहत मिलेगी? क्योंकि इससे अधिकांश लाभ एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग) क्षेत्र को होगा और एमएसएमई कंपनियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा शहरी राज्यों में स्थित है जहां से अब श्रमिकों का पलायन हो चुका है। तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि किस प्रकार इन श्रमिकों को कोरोना संकट समाप्त होने के बाद वापस सामान्य कार्यशैली में लाया जाए और कैसे पर्याप्त रोजगार का सृजन करा जाए?

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ई-लर्निंग है जरूरी, ताकि सीखने का सिलसिला रहे जारी

लॉकडाउन के दौरान स्कूल-कॉलेज बंद हैं, ऐसे में पढ़ने और सीखने का तरीका बदला है। ई-लर्निंग या ऑनलाइन क्लासेज इस बदलाव का ही एक रूप है तो आइए हम ई-लर्निंग के विविध पहलुओं पर चर्चा करते हैं।

कोविड-19 महामारी, जिसके प्रभाव से पूरा विश्व जूझ रहा है, उसने केवल चिकित्सा क्षेत्र ही नहीं बल्कि हर व्यापारिक एवं सामाजिक गतिविधियों पर भी प्रभाव डाला है। जब कोरोना वायरस के चलते लोगों का एक निर्धारित दूरी बनाये रखना आवश्यक हो गया, तब 24 मार्च ,2020 को भारत सरकार ने लॉकडाउन का आदेश दिया। लॉकडाउन के निर्णय के कारण सभी शैक्षिक संस्थान भी बंद कर दिए गए। शिक्षा क्षेत्र की इस रूकावट को पार करने के लिए सभी शैक्षिक संस्थानों ने शिक्षा को डिजितलाइस कर दिया और फ़ोन व कंप्यूटर के माध्यम से पढ़ाई जारी रखी। ज़ूम, हैंगआउट, मीट, अन्य ऐप्स और वेबसाइट के द्वारा छात्रों को पढ़ाया जा रहा है। यदि डिजिटल माध्यम का उपयोग न किया जाता तो इस वर्ष की शैक्षिक प्रक्रियाएं रद्द हो सकती थी और फिर अगले वर्ष बच्चों, अध्यापकों, शैक्षिक संस्थानों, व शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों को भारी कठिनाइयां उठानी पड़ती।