सड़कों पर नंगे पैर, भारी गठरी लिए, कभी ट्रकों पर तो कभी बसों में और श्रमिक ट्रेनों में भर कर प्रवासी मजदूर अपने घर जा रहे हैं। घर तो जा रहे हैं लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, गांव जाकर उन्हें अपनी रोजी-रोटी के लिए एक बार फिर से लड़ना है। प्रवासी मजूदरों के सामने अपने गांव में भी रोजगार एक बड़ी समस्या है।
कोरोना वायरस महामारी के चलते देशव्यापी लॉकडाउन से करोड़ों श्रमिकों अथवा प्रवासी मजदूरों को बहुत से कष्ट झेलने पड़े हैं। रोज़ नए-नए भयावह चित्र के सामने आते हैं देश के श्रमिकों के लिए बनाई गई नीतियां के खोखलेपन को दर्शाती हैं। प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज का ऐलान तो किया परंतु इस राहत पैकेज से क्या मज़दूरों को सचमुच राहत मिलेगी? क्योंकि इससे अधिकांश लाभ एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग) क्षेत्र को होगा और एमएसएमई कंपनियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा शहरी राज्यों में स्थित है जहां से अब श्रमिकों का पलायन हो चुका है। तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि किस प्रकार इन श्रमिकों को कोरोना संकट समाप्त होने के बाद वापस सामान्य कार्यशैली में लाया जाए और कैसे पर्याप्त रोजगार का सृजन करा जाए?
यह बात तो किसी से नहीं छुपी है कि भारत दुनिया की सबसे विशाल युवा शक्ति का केंद्र है और यह युवा शक्ति अगर सही दिशा में केंद्रित हो तो भारत अमेरिका और रशिया जैसे राष्ट्रों को भी पछाड़ सकता है। परंतु इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए रोजगार के अवसर कहां से आएंगे? कैसे भारत के युवा को नई दिशा दिखायी जाए? गहन अध्ययन के बाद केवल एक उपाय आंखों के सामने आता है और वह है स्वरोजगार।
जी हां, स्वरोजगार भारत के श्रमिकों की सभी समस्याओं का समाधान साबित हो सकता है यदि सही तरीके से इसे अपनाया जाए तो। स्वरोजगार के काफी फायदे हैं जैसे कि इसका लचीलापन जोकि आपके व्यापार में निवेश और लाभ को आपके हाथों में सौंप देता है। इसके अलावा यदि एक व्यक्ति स्वरोजगार की ओर बढ़ता है तो वह अपने संग कई और लोगों को भी रोज़गार प्राप्त करा सकता है।
परंतु यह सुनने में जितना सरल लगता है उतना सरल है नहीं। लाभ तो अनेक है परंतु कई चुनौतियां भी हैं। शुरुआती निवेश के लिए धनराशि एकत्रित करना, गांव और कस्बों में अनिपुण जनसंख्या, बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे उचित सड़कें एवं नियमित बिजली की आपूर्ति वगैरह प्रमुख समस्याएं हैं। इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए हमें समुचित विकास की ओर अग्रसर करने वाले कदम उठाने होंगे।
स्वरोजगार का अस्थिर होना इसकी प्रमुख कमजोरियां में से एक हैं। परंतु कोरोना महामारी ने यह भी सिद्ध कर दिया कि स्थिर कुछ भी नहीं है- ना नियोजित रोज़गार और ना ही स्वरोजगार। तो केवल मुट्ठी भर कमियां देख लेने से स्वरोजगार को कम नहीं आंकना चाहिए अपितु आत्मविश्वास की बढ़ोतरी करके और नए अवसर तैयार करने चाहिए।
अभी भी देश के कई ग्रामीण हिस्सों में उचित शिक्षा नहीं पहुंच पाती जिसके कारण वहां के निवासी अशिक्षित एवं अनिपुण रह जाते हैं। ऐसे में आवश्यकता है नई शिक्षा नीतियों की जोकि प्रत्येक गांव और कस्बे तक शिक्षा एवं योग्य शिक्षकों को पहुंचाने में सफल रहे। यदि हम प्रत्येक गांव में एक- एक विद्यालय भी खोल सके तो यह बहुत लाभकारी हो सकता है। शिक्षा पर सभी का अधिकार होता है। शिक्षा नीतियों के साथ शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है। हमें इस तरीके की शिक्षा को विद्यार्थियों तक पहुंचाना चाहिए जो कि लैंगिक भेदभाव और जातिगत भेदभाव से उन्हें ऊपर ले जा सके।
रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़नी चाहिए जिसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करना आवश्यक है। कौशल भारत जैसी और योजनाओं को लाना होगा जोकि अधिक से अधिक महिलाओं को रोज़गार पाने में सहायता कर सकें।
अगर बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो इसमें राज्य सरकारें ग्राम पंचायतों के साथ मिलकर इनका विकास कर सकती हैं लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यहां पर पारदर्शिता होना आवश्यक है। प्रत्येक ग्राम में यदि बैंक और एटीएम की सुविधाएं पहुंचाई जा सके तो भारत सूक्ष्म एवं लघु रोजगारों के क्षेत्र में बाजी मार सकता है और साथ ही इससे बड़े उद्योगों को भी गांव तक पहुंचने में सरलता होगी। अभी हाल ही में उत्तराखंड राज्य सरकार ने अपने राज्य में स्वरोजगार को बढ़ाने के लिए कुछ नए कदम उठाए हैं जैसे कि नए लघु व्यापारियों को बैंकों से ऋण लेने में 25% तक की सब्सिडी देना। ऐसी योजनाएं ग्रामों और कस्बों में व्यापार सृजन करेंगी और साथ ही शहरीकरण पर भी विराम लगाएंगी।
जहां हम स्वरोजगार को बढ़ाने की बात कर रहे हैं वहीं पर कई लोगों का मानना यह है की भारत जैसी जटिल अर्थव्यवस्था में स्वरोजगार को फैलने में समय लगेगा तो इसके विपरीत मनरेगा जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिए ताकि ग्राम निवासियों को सुनिश्चित रोज़गार मिल सके। परंतु मनरेगा की बहुत सी कमियां भी है। साथ ही हमें यह भी सोचने की आवश्यकता है की यदि हम अभी स्वरोजगार के लिए कदम नहीं बढ़ाएंगे तो कब? आखिर एक बीज को भी बोने के बाद विशाल वृक्ष बनने में समय लगता है, तो अब हम और समय व्यर्थ नहीं कर सकते हैं। हां यह बात सही है कि अभी भी मनरेगा कई ग्रामीण घरों की (खासकर स्त्रियों को) मासिक आय में योगदान करने में सहायता करता है जिससे कि उनका घर खर्च चल पाता है। साथ ही इसके द्वारा किए गए निर्माण कार्यों से गांव में बुनियादी स्तर पर सफलता हासिल होती है। तो मनरेगा को स्पष्ट नीतियों और पारदर्शिता के साथ चलन में रखते हुए यदि स्वरोजगार बढ़ाने का दृढ़ संकल्प लिया जाता है तो भारत के श्रमिकों का श्रम व्यर्थ जाने से रोका जा सकता है।