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धनतेरस पर इन उपायों से होंगे समृद्ध, मिलेगी सफलता

धनतेरस पर खरीददारी का खास महत्व है, इस दिन घर में लायी गयी चीजों से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

दीपावली में पांच पर्वों की परंपरा है जिसकी शुरुआत धनतेरस से होती है। धनतेरस के दिन खरीदारी को शुभ माना जाता है जो सबके लिए सौभाग्यवर्धक होता है। इस दिन लोग अपनी-अपनी प्रिय चीजों की खरादारी करते हैं। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बने आभूषण और सिक्के खरीदने की सदियों पुरानी सनातन परंपरा है जो चली आ रही है। धनतेरस को धनवंतरी जयंती तथा धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है।

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#चारधाम यात्रा: बद्री-केदार के दर्शन

गाजियाबाद: सच ही कहा है जब तक बाबा किसी को बुलाते नहीं तब तक वह बाबा के द्वार नहीं पहुंच सकता. 

विगत कुछ दिनों पहले केदारनाथ में भारी वर्षा एवं बद्रीनाथ के रास्ते में लैंडस्लाइड होने की वजह से रास्ता बंद होने की खबरें सबने पढ़ी और सुनी और बहुत से लोग यात्रा से वापस कर दिए गए और दर्शन नहीं कर सके, हमारा भी यात्रा का कार्यक्रम उसी अंतराल में था,हमने भी समाचार सुनकर जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया था। 

 किंतु बाबा के आशीर्वाद से वर्षा भी रुक गई और जिस दिन हमें जाना था ठीक उसके 1 दिन पहले दोपहर 2:00 बजे तक बद्रीनाथ जी के रास्ते भी साफ हो गए। 

हमने अपने कार्यक्रम को पुनः व्यवस्थित करते हुए 22 अक्टूबर को अपनी यात्रा गाजियाबाद से प्रारंभ की और रात्रि में हम हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग होते हुए गुप्तकाशी पहुंचे। गुप्तकाशी में रात्रि विश्राम करने के पश्चात प्रातः हेलीकॉप्टर के माध्यम से बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए चले। 

भारी वर्षा एवं रास्तों के बंद होने की सूचना की वजह से ज्यादा भीड़ नहीं थी अतः हम आसानी से हेलीकॉप्टर ले सके और मौसम भी खुला हुआ था इस वजह से हम प्रातः ही केदारनाथ मंदिर के प्रांगण में पहुंच कर बाबा केदारनाथ के दर्शन कर सके। 

बाबा केदारनाथ के दर्शनों के बाद हम बाबा भैरव नाथ के दर्शन करने गए जहां काफी हिमपात हुआ और ठंड बहुत बढ़ गई किंतु बाबा द्वारा दी गई शक्ति की वजह से हम वहां रह पाए और सांध्य कालीन आरती का भरपूर आनंद ले पाए। हमने वहां बाबा के दरबार में मन भर पूजा अर्चना की और अपने पूरे परिवार मित्र जनों एवं संपूर्ण विश्व की सुख शांति के लिए बाबा से आशीर्वाद मांगा। अगले दिन सुबह बारिश की संभावना थी इसलिए हम लोग सुबह ही हेलीकॉप्टर के माध्यम से वापस गुप्तकाशी आ गए और वहां से हमारी बद्रीनाथ यात्रा की शुरुआत हुई। 

कुछ दूर चलने के बाद हम काली मठ जो कि 1 शक्तिपीठ है वहां पहुंचकर हमने मां दुर्गा की उपासना की और मंदिर प्रांगण में सविधि पूजन किया। पूजन के पश्चात हमने मंदिर प्रांगण में ही तवे की रोटी और पहाड़ी साग का आनंद लिया। 

कालीमठ में मां का आशीर्वाद लेने के बाद अब हमने उखीमठ की ओर रुख किया। उखीमठ राजस्थान है जब केदारनाथ में बर्फबारी प्रारंभ हो जाती है और शीतकाल में भगवान को उखीमठ में ही लाया जाता है जहां 6 महीने उनकी पूजा-अर्चना होती है। उखीमठ में भी हमने विधिवत पूजा की और पंच केदारेश्वर के दर्शन किए, उखीमठ के पुजारी ने हमें बताया कि जो लोग पंच केदारेश्वर के दर्शन नहीं कर पाते और उखीमठ में दर्शन के लिए आते हैं उनको पांच केदारेश्वर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है।

  उषा (बाणासुर की बेटी) और अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) की शादी यहीं सम्पन की गयी थी। उषा के नाम से इस जगह का नाम उखीमठ पड़ा।

उखीमठ में दक्षिण भारत के कर्नाटक के लिंगायत संतों रावल के प्रमुख गुरु का केंद्र गद्दी ) भी है। सर्दियों के दौरान भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली को इस जगह के लिए केदारनाथ से लाया जाता है। भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है।

उखीमठ से हम प्रस्थान कर बद्रीनाथ की ओर बढ़े और रास्ते में कई जगह हमें लैंडस्लाइड के स्थान दिखाई पड़े किंतु उन्हें प्रशासन द्वारा पूरी तरह से साफ कर दिया गया था और यातायात सुचारू रूप से चल रहा था। सड़के सामान्यतः हमें बहुत ही अच्छी हालत में मिली और ज्यादातर सड़क दोनों तरफ से आ रहे वाहनों के लिए काफी चौड़ी और सुगम थी जिससे हमें ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। रात्रि में हम जब बद्रीनाथ पहुंचे हमने पहुंचते ही बाबा बद्रीनाथ के मंदिर की तरफ रुख किया और दर्शनों के बारे में जानकारी प्राप्त कर प्रातः कालीन दर्शन के लिए अपना कार्यक्रम सुनिश्चित किया। 

प्रातः सबसे पहले प्राकृतिक रूप से गंधक से बने तप्त कुंड जिसे गर्म पानी का स्रोत भी कहते हैं वहां पर स्नान किया, जिसमें मुख्य रुप से यह ध्यान रखा क्योंकि वहां का तापमान बहुत ही कम था ऐसे में सीधे गर्म पानी में जाना खतरनाक हो सकता है इसलिए सबसे पहले अपने पावर तो उस गर्म पानी में डाला और उसके बाद धीरे-धीरे घुटनों तक और फिर कमर तक और धीरे-धीरे समय देकर पूर्ण रूप से अपने को उस तप्त कुंड में नहाने के लिए उतारा। तब तक कुंड में स्नान के बाद बहुत ही अलौकिक अनुभव हुआ और ऐसा लगा फिर ठंड मानो भाग गई हो शरीर से और उसके बाद पूरी उर्जा से प्रातः 6:15 भगवान बद्री विशाल के दर्शनों के लिए हम मंदिर में गए और भगवान का श्रृंगार देखा और आरती देखी, जो अनुपम और अलौकिक था। ऐसा माना जाता है कि बद्रीनाथ से स्वर्ग का रास्ता प्रारंभ होता है और यह सा धाम है जहां दर्शन के बाद मोक्ष और सद्गति प्राप्त होती है। पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ में 3 किलोमीटर के क्षेत्र में ब्रह्म कपाल जिसे ब्रह्मा जी का पांचवा सर माना गया है वह गिरा था और वहां पितृ तर्पण और पिंडदान के बाद पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और यह सर्वश्रेष्ठ और उच्चतम पितृ तर्पण और पिंडदान होता है। बद्रीनाथ जी के दर्शन करने के बाद हम जोशीमठ होते हुए पोखरी से 15 किलोमीटर दूर स्थित कार्तिक स्वामी के दर्शन करने गए, इसमें 3 किलोमीटर की चढ़ाई है और यह बहुत ही उचित चोटी पर स्थित है, 

वहां लगे शिला पट के अनुसार

कार्तिक स्वामी, रुद्रप्रयाग जिले के पवित्र पर्यटक स्थलों में से एक है।  रुद्रप्रयाग शहर से 38 किमी की दूरी पर स्थित इस जगह पर भगवान शिव के पुत्र, भगवान कार्तिकेय, को समर्पित एक मंदिर है।  समुद्र की सतह से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह स्थान शक्तिशाली हिमालय की श्रेणियों से घिरा हुआ है।  पुराण कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि वे पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगा कर आएं और घोषित किया कि जो भी पहले चक्कर लगा कर यहाँ आएगा वह माता-पिता की पूजा करने का प्रथम अवसर प्राप्त करेगा।

भगवान श्री गणेश, जो कि शिव जी के दूसरे पुत्र थे, ने अपने माता-पिता के चक्कर लगाकर (श्री गणेश के लिए उनके माता-पिता ही ब्रह्माण्ड थे) यह प्रतियोगिता जीत ली, जिससे कार्तिकेय क्रोधित हो गए।  तब उन्होंने अपने शरीर की हड्डियाँ अपने पिता को और मांस अपनी माता को दे दिया।  ये हड्डियाँ अभी भी मंदिर में मौजूद हैं जिन्हें हज़ारों भक्त पूजते हैं।  रुद्रप्रयाग – पोखरी मार्ग पर स्थित इस मंदिर तक कनक चौरी गांव से 3 किमी की ट्रेकिंग के द्वारा पहुंचा जा सकता है। कार्तिक स्वामी के दर्शन के पश्चात हमने रुद्रप्रयाग में रात्रि विश्राम किया जहां अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल है। यहाँ से अलकनंदा देवप्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है तथा गंगा नदी का निर्माण करती है। प्रसिद्ध धर्मस्थल केदारनाथ धाम रुद्रप्रयाग से 86 किलोमीटर दूर है। भगवान शिव के नाम पर रूद्रप्रयाग का नाम रखा गया है। रूद्रप्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी नदी पर स्थित है। रूद्रप्रयाग श्रीनगर (गढ़वाल) से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदाकिनी और अलखनंदा नदियों का संगम अपने आप में एक अनोखी खूबसूरती है। इन्‍हें देखकर ऐसा लगता है मानो दो बहनें आपस में एक दूसरे को गले लगा रहीं हो। ऐसा माना जाता है कि यहां संगीत उस्‍ताद नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी और नारद जी को आर्शीवाद देने के लिए ही भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। 

रुद्रप्रयाग से हमने प्रातः ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार की ओर प्रस्थान किया और हरिद्वार में हर की पैड़ी पर गंगा स्नान कर प्रसिद्ध मोहनपुरी वाले पर पूरी छोले हलवा और लस्सी का स्वाद लिया और गंगाजल लेकर दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गए। 

इतने अच्छे दर्शन और इतनी सफल यात्रा को लेकर मन में बार-बार हर्ष उल्लास हो रहा था और एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था। सभी बाधाओं को दूर करते हुए जिस तरह से हमने यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की उसमें यह बात दोबारा से सच हो गई कि बाबा जब भक्तों को बुलाते हैं तो रास्ते में कोई व्यवधान उसे रोक नहीं सकता।

(लेखक मीडिया व्यवसायी हैं)

 
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अपराजिता पूजा से मिलती है सफलता

सकल सिद्धियों की अवतार देवी अपराजिता की विजयादशमी के दिन सभी माताओं की विदाई से पूर्व पूजा की जाती है। मां अपराजिता साक्षात देवी दुर्गा का अवतार हैं। शारदीय नवरात्र अपराजिता पूजन के बिना अधूरा माना जाता है। इस पूजा से साधक को सदैव सफलता प्राप्त होती है।  

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गांधी का महिलाओं के नाम संदेश

औरत का सुदृढ़ व्यक्तित्व विकसित समाज का स्तम्भ होता है, आज औरतों के लिए जो अनुकूल माहौल बना है उसकी नींव गांधी ने बहुत पहले रख दी थी। 

महिला का आर्थिक स्वावलम्बन, उसकी परिवार में मजबूत पकड़, पुरुष के साथ समानता तथा सहनशीलता की मूर्ति बन कठिनाइयों को धैर्यपूर्वक सहन करने वाले गुणों को गांधी ने बरसों पहले महत्व दिया था। उनके इन्हीं गुणों के कारण गांधी ने नारियों को सहज ढ़ंग से आजादी की लड़ाई का अभिन्न अंग बनाया। गांधी के नारी से जुड़े विचार इक्कीसवीं सदी में क्रांतिकारी लगते हैं। 

आज आर्थिक सशक्तिकरण का झंडा बुलंद करने वाली नारी के स्वावलम्बन का बीज गांधी ने बरसों पहले रोपित कर दिया था। उन्होंने चरखा की अवधारणा विकसित कर गांव-गांव में महिलाओं को रोजगार दिलाया। इस तरह महिलाओं ने पहली बार आर्थिक स्वावलम्बन का अनुभव किया जो उनके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण पक्ष रहा। चरखा द्वारा आजाविका अर्जित करने की खास बात यह रही कि इसमें नारियों को घर से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं थी। इस प्रकार आज महामारी के दौर में प्रचलित वर्क फ्राम होम की अवधारणा ने सालों पहले सजीव रूप धारण कर लिया था। खादी निर्माण उन नारियों हेतु संजीवनी साबित हुआ जो घरेलू जिम्मेदारियों और सामाजिक बंधनों के कारण घर से बाहर नहीं जा सकती थीं । 

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श्रीकृष्ण के बालरूप की पूजा से होगी मनोकामनाएं पूरी

जन्माष्टमी के दिन विष्णु भगवान ने कृष्ण अवतार के रूप में धरती पर जन्म लिया था। इस दिन लोग मंगल गीत गान कर भगवान कृष्ण को जन्मोत्सव मनाते हैं। साथ ही जन्माष्टमी के पवित्र अवसर पर किए विविध उपाय आपकी मुश्किलों को खत्म कर मनोकामनाएं करते हैं। 

जन्माष्टमी हिंदूओं का बड़ा त्योहार है, इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। श्रीकृष्ण के भक्त इस त्योहार का बहुत इंतजार करते हैं। जन्माष्टमी भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनायी जाती है। इस दिन पूरे देश के मंदिरों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। पंडितों की मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन जो भक्त अपने घर में विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं उनकी सभी इच्छाएं जरूर पूरी होती हैं।