वैश्विक महामारी कोरोना की दूसरी लहर देश में अब ढ़लान की तरफ है। पहली लहर के बाद दूसरी लहर का प्रकोप कहीं अधिक दिखाई पड़ा। कोरोना को लेकर तमाम बातें सामने आईं हैं, लेकिन किसे प्रमाणिक माना जाए अथवा किसे नहीं इसको लेकर दावेदार भी किन्तु-परन्तु की मुद्रा में है। इस अदृश्य लड़ाई को समूचे विश्व ने अपने तरीके से लड़ा, लेकिन भारत इसमें अव्व्वल इसलिए भी रहा क्योकिं भारत के पास आध्यात्मिक एवं संयमित जीवन शैली आज भी विद्यमान है, फिर भी देश ने जो दुःख सहा है, वह असहनीय है।
इसी बीच देश ने देखा कि कुशल नेतृत्व कैसे देश गाढ़े समय में भी आम जन से जुड़ा हुआ है। जैसे-जैसे कोरोना का प्रभाव बढ़ा केंद्र सरकार निरंतर एक के बाद एक निर्णायक फैसले लिए। सबसे पहले पीपीई कीट, मास्क हो अथवा वेंटीलेटर सरकार ने इस दिशा में काम करना शुरू किया और कोरोना की पहले वेव में ही सफलता पाई। कोरोना के पहले वेव के बाद आए बजट में पहली बार कोई केंद्र सरकार कैसे हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की बुनियाद को मजबूत करने के लिए कृत संकल्पित है उसका प्रमाण हमें स्वास्थ के बजट में हुई अभूतपूर्व वृद्धि में देखने को मिलता है। 2021 -22 के बजट में स्वास्थ बजट को 94 हजार करोड़ से बढ़ाकर 2.38 लाख करोड़ कर दिया था। इसका जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि कुछेक लोगों का यह मानना है कि सरकार पहले लहर (वेव) के बाद चुपचाप बैठ गई थी और वैक्सीन का 35 हजार करोड का बजटीय प्रावधान प्रधानमंत्री के मुफ्त टीकाकरण की पिछली घोषणा के बाद लगभग 1 लाख करोड़ कर दिया गया है।
दिसम्बर से ही देखें तो स्वास्थ्य मंत्रालय, गृह मंत्रालय निरंतर राज्यों को कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए उचित निर्देश दिए। परन्तु इस महामारी के आगे सभी व्यवस्थाएं छोटी पड़ गईं। कोरोना के इस कालखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लड़ाई के सभी पहलुओं पर विस्तार से कार्य किया चाहे आक्सीजन को लेकर लिया गया नीतिगत निर्णय हो मसलन ऑक्सीजन के औद्योगिक इस्तेमाल पर लगाई गई रोक हो अथवा ग्रीन कॉरिडोर बनाकर ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाने की व्यवस्था चाहे 6 साल के अंतराल का सफल कूटनीति का परिणाम है कि अदभुत अंतराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त हुआ।
सरकार आज सभी जिले में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है, ऑक्सीजन की उत्पादकता 750 मीट्रिक टन से बढ़कर लगभग 10 हजार मीट्रिक टन रोजाना हो गया है। ऐसे ही रेमडेसिविर इंजेक्शन के उत्पादन में भी अभूतपूर्व वृद्धि इस बात का सूचक है कि सरकार ने जो प्रयास किए हैं उसके परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं। आज भी गरीबों को मुफ़्त में राशन देने का प्रबंध करके केंद्र सरकार ने संवेदनशीलता का परिचय दिया है। अभी दूसरी लहर (वेव) से देश निपटा नहीं है कि तीसरी लहर (वेव) को लेकर चेतावनी विशेषज्ञों द्वारा आने लगी है। कोरोना कब कैसे अपना स्वरूप बदल रहा है यह बात वैज्ञानिकों को भी हैरान करने वाला है। बीमारी नई है और विवादस्पद जन्म है, स्वभाविक या मानवकृत, इसलिए शोधकर्ता के लिए भी रोज एक नया दिन है। यह सही है कि इससे पहले किसी भी देश पर ऐसी विपत्ति नहीं आई थी जब देश और दूनिया पूरी तरह थम जाए लोग तमाम तरह की शंकाओं से घिर जाएँ,व्यवस्थाएं खुद को असहाय महसूस करने लगे।
विपक्ष का इस कालखंड में जो रवैया रहा वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण एवं निंदनीय रहा। क्या विपक्ष किसी भी संकट के समय सरकार के साथ खड़ा नहीं हो सकता है? उत्तर है नहीं ! क्योंकि हाल के कुछ वर्षो में जब भी देश के उपर किसी संकट का साया मंडराया है विपक्ष इसमें अपने लिए राजनीतिक अवसर तलाश करने लगा। उरी हमला हो, सर्जिकल स्ट्राइक हो, कोरोना हो ऐसे कई सूची हमारे सामने दिखाई देगी जो विपक्ष की नकारात्मक राजनीति का परिचायक है। राजनीति का यह स्वरूप निश्चित ही परिपक्व लोकतंत्र पर चोट पहुँचाने वाला है। ऐसे संकट के समय जब प्रधानमंत्री बार-बार सबको एक साथ मिलकर इस लड़ाई को लड़ने का आग्रह कर रहे थे तब विपक्षी दल लगातार संवेदना शून्य होकर राजनीतिक जमीन तलाश रहे थे। प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री तथा राज्यपालों से निंरतर संवाद बनाए रखे, किन्तु इन बैठकों में कुछ एक मुख्यमंत्री प्राय: शमिल नहीं होते थे इस कतार में ममता बैनर्जी सबसे पहले आती हैं। विषय की गंभीरता को भुलाकर केजरीवाल मीटिंग को रेकॉर्डिंग करा अपनी मार्केटिंग में लग गए क्या यह हमारे संघीय ढांचे का आदर्श स्वरूप है? इसपर भी विचार करना चाहिए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री हर अच्छे काम के लिए श्रेय लेने पहली पंक्ति में खड़े दिखाई पड़ते हैं, लेकिन जब जवाबदेही की बात आती है और व्यवस्था संभाल नहीं पाते फिर दोषारोपण करने लगते हैं। सनद रखने योग्य बात यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री सदैव दिल्ली के हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर का ढ़ोल बजाते आए हैं परन्तु स्थिति कितनी बदतर हुई यह सबने देखा। मुहल्ला क्लिनिक का प्रचार दिल्ली सरकार ने जमकर किया इसे एक अभिनव प्रयोग बताया, इस संकटकाल में मुहल्ला क्लिनिक की स्थिति और उपयोगिता देखकर मुझे लालू यादव के समय का चरवाहा विद्यालय की याद आ गई।
इन दोनों की समानता इसी में है कि ये जिस अभिनव और व्यवहारिकता की दुहाई देकर शुरू हुए दोनों ही एक निश्चिय समयावधि में ही अपनी विफलता के कारण चर्चा में आ गए। बहरहाल, इस समय भारत के चिकित्सा तंत्र और वैज्ञानिकों ने भी कड़ी मेहनत की और इस लड़ाई को फ्रंटफूट पर लड़े, जिसके परिणाम स्वरूप हम कम समय में दो स्वदेशी वैक्सीन हमारे यहाँ उपलब्ध हो पाई। आज हमारा टीकाकरण अभियान विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है।
टीका को लेकर भी विपक्ष जो विद्रूप स्वरूप दिखाया वह हैरानी में डालने वाला है। कांग्रेस शासित राज्यों में कुप्रबंधन के कारण कहीं वैक्सीन की बर्बादी हो रही है तो कहीं वैक्सीन को निजी अस्पतालों में बेचा जा रहा था। बहरहाल, कोरोना केवल सरकारों के लिए चुनौती बनकर नहीं आया बल्कि वैज्ञानिकों ने भी अभी तक इसका कोई इलाज ढूंढने में सफलता नहीं पाई है बल्कि सहीं मायने में विश्व के सभी देश इसके कवच अर्थात टीका पर आकर रूक गए हैं। प्रयास और शोध उसी तीव्रता से जारी है वहॉ भी और यहॉ भी ।
बातें हो गयी,दोषारोपण भी हो गया, सभी को क्या करना है राज्यों को यह भी स्पष्ट हो गया । तेज टीकाकरण, स्वास्थ इंफरास्ट्रक्चर पर काम करना है – प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र, जिला अस्पतालों की लचर व्यवस्था को सुदृढ करना, डाक्टरों, नर्स, पैरामेडिक्स को यथाशीघ्र बहाल करना । अपने राज्य से भरपाई न हो तो अखिल भारतीय आवेदन से नियुक्ति हो, जरूरत पड़े तो उम्र सीमा में छूट भी दी जाये, आई टी, आर्टिफीशियल इंटेजेलेंस का प्रयोग, प्राथमिक जिला अस्पतालों से उत्कृष्टता का केन्द्र से जोड़ा जाए । सेवानिवृत डाक्टरों को telemedicine परामर्श में सम्मिलित किया जाये ताकि अनुभव का लाभ मिल सके ।
अब क्रियानवयन हो और उसपर सहयोग हो, संवाद हो। जो शिक्षा के योजनाकार हैं उन्हें भी अपनी कमी का अहसास हो कि हेल्थ और अस्पताल मैनेजमेंट का एक अलग विषय हो स्पेशलिटी का क्योंकि अस्पताल चलाना डाक्टरों का काम नही है, इसकी स्पष्टता हो । बिना स्वस्थ, सुदृढ स्वास्थ्य संरचना निर्माण किए आर्थिक प्रगति रूक जाएगा यह विश्व ने देख लिया औरों से ज्यादा अब हमें भारतीयों को समझना है । राजनीति भी भविष्य का स्वास्थ्य और वित्त की बारीकी के संतुलन पर ही होगा। अब काल है न अहम, न हम, भारत प्रथम का ।
विश्व के सभी वैज्ञानिकों को कोरोना का स्थाई समाधान देने की दिशा में तेज़ गति से आगे बढ़ना चाहिए। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने इन्हीं विपत्तियों से लड़ने और रास्ता बनाने के लिए लिखे हैं कि- सच है विपत्ति जब आती है कायर को ही दहलाती है, सूरमा नहीं विचलित होते क्षण एक नहीं धीरज खोते विघ्नों को गले लगाते हैं काँटों में राह बनाते हैं। यह समय विचलित होने का नहीं बल्कि एक साथ मिलकर इस संकट से मुकाबला करने का है।
(लेखक भाजपा सांसद हैं और विचार उनके अपने हैं)