आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिन को वाल्मीकि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। वाल्मीकि जयंती के दिन शरद पूर्णिमा और कोजागारी लक्ष्मी पूजा भी की जा रही है। साथ ही राजस्थान में इस दिन को प्रगति दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि की जीवनी बहुत रोचक है तो आइए वाल्मीकि जयंती के अवसर महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं पर चर्चा करते हैं।
जाने महर्षि वाल्मीकि के बारे में
महर्षि वाल्मीकि को वैदिक काल के महान ऋषि के रूप में जाना जाता है। वाल्मीकि को एक नहीं बल्कि कई भाषाओं का ज्ञान था। महाकाव्य रामायण की रचना करने के कारण उन्हें आदिवकवि कहा जाता है। पौराणाकि मान्यताओं के अनुसार वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप के नौवें पुत्र वरूण तथा चर्षणी के घर में हुआ था। उनके भाई का नाम भृगु था। एक बार वह तपस्या में लीन थे। तप करने के दौरान दीमकों ने उनके शरीर पर अपना घर बना लिया। शरीर पर दीमकों के घर बनाने के कारण उन्हें वाल्मीकि नाम दिया गया। बचपन में उन्हें एक भीलनी चुरा कर ले गयी थी और अपने बच्चे की तरह पाला। भील के यहां पलने के कारण ही वह आजीविका के लिए डकैती का काम करते थे।
रामायण लिखने की प्रेरणा कैसे मिली
डाकू रत्नाकर ने जब नारद मुनि को बंधक बनाया तो उन्होंने रत्नाकर को उसके पापों के बारे में बताया। तब वह जंगल में तप करने लगे। तप के उपरांत ब्रह्मदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें ज्ञान दिया। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने रामायण की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि से जुड़ी कथा
वाल्मीकि का प्रारम्भिक नाम वाल्मीकि न होकर रत्नाकर था। उनका पालन-पोषण वन में रहने वाली भील प्रजाति ने किया था। भील के बीच पले-बढ़े होने के कारण आजीविका के लिए डाकू बन गए। इस वे डाकू बनकर लोगों का सामान लूटते और जरूरत पड़ने पर उन्हें मार भी देते। एक बार जंगल से नारद मुनि गुजर रहे थे। रत्नाकर डाकू ने उन्होंने पकड़ लिया और बंधकबना दिया। बंधक बनाने के बाद नारद ने रत्नाकर से पूछा कि तुम ये लूटपाट के काम क्यों करते हो। इस पर वाल्मीकि ने जवाब दिया कि अपने अपरिवार के लोगों का भरण-पोषण करने के लिए वह डकैती करते हैं। तब नारद मुनि ने कहा कि इन कर्मों से तुम्हें पाप लगेगा। क्या इन पापों का फल भोगने में तुम्हारे घर वाले हिस्सा लेंगे। रत्नाकर बोले हां और अपने परिवार वालों से पूछने चले गए।
लेकिन परिवार वालों ने उनके साथ पापों का फल भुगतने से इंकार कर दिया। इस घटना से महर्षि वाल्मीकि बहुत आहत हुए और उन्होंने डकैती छोड़ कर संन्यास ले लिया। संन्यास ग्रहण करने के बाद जंगल में जाकर तप करने लगे। तप के उपरांत उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने संस्कृत में रामायण की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि जयंती का महत्व
हमारे देश में वाल्मीकि जयंती बहुत हर्ष और उल्लास से मनायी जाती है। साथ ही इस अवसर पर कई शोभायात्राएं आयोजित की जाती है। महर्षि वाल्मीकि के रामायण देश में बहुत सम्मान प्राप्त है तथा रामायण जैसे महाकाव्य की रचना कर उन्होंने आम जनता को सन्मार्ग की राह दिखायी। वाल्मीकि जयंती के अवसर पर वाल्मीकि मंदिरों में पूजा की जाती है और उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं की झांकी निकाली जाती है।