पितृपक्ष में इन कामों से पितृ होंगे प्रसन्न, होगी आपकी उन्नति

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पितृपक्ष शुरू हो गया है, इस दौरान पितृ धरती पर आते हैं। ऐसे में विधिपूर्वक श्राद्ध करने से न केवल पितृ प्रसन्न होंगे बल्कि आपको आर्शीवाद भी देंगे। पितरों का आर्शीवाद आपको और आपके आने वाली पीढ़ियों को सुखी रखेगा।

हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का खास महत्व होता है, ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध में की गयी गलतियों से पितृ नाराज होकर चले जाते हैं और कभी वापस नहीं आते हैं। ऐसे में कुछ नियमों का पालन जरूरी है।

पितृपक्ष में इन नियमों का करें पालन

1. पितृपक्ष में श्राद्ध करते समय सभी काम गले में दाये कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुंह करके करें। जिन पितरों के पुत्र नहीं होते उनके भाई भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं तो उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

2.श्राद्ध करते समय ध्यान रखें कि श्राद्ध हमेशा दोपहर में ही करें। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।

3.श्राद्ध के दौरान भोजन बनाते समय भी खास ख्याल रखें। घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिंडी कच्चे केले की सब्जी ही बनाएं। आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को अर्पित नहीं की जाती हैं।

4.पितृपक्ष में ब्रह्राचर्य के व्रत का पालन जरूर करें। साथ ही पूरे पितृपक्ष में श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पान, बाहर का खाना नहीं खाएं। श्राद्ध पक्ष शोक व्यक्त करने के लिए होता है इसलिए इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं करें।

5.चतुर्दशी को कभी भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। लेकिन किसी व्यक्ति मृत्यु अगर की युद्ध में हुई हो उनके लिए चतुर्दशी का श्राद्ध बेहतर माना जाता है। किसी दूसरे व्यक्ति के घर या जमीन पर श्राद्ध कर्म नहीं करें। लेकिन जंगल, पहाड़, मंदिर या तीर्थ स्थान को किसी दूसरे की जमीन के तौर पर नहीं देखे जाता है।

6. अगर परिवार में ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य भी तिलांजलि और पिंडदान दे सकते हैं। श्राद्ध के पिंडों को गाय, ब्राह्राण और बकरी को खिलाना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में कभी भी लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इन दिनों पत्तल पर स्वयं और ब्राह्राणों को भोजन करवाना अच्छा माना जाता है।

पितृ पक्ष में अपने व्यवहार का रखें ध्यान

पितृपक्ष बहुत खास होता है इसलिए इस समय अपने व्यवहार का विशेष ख्याल रखें। इस समय दरवाजे पर आए किसी भी अतिथि को न खाली हाथ न लौटाएं। उन्हें जरूर कुछ दान दे दें। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में पितृ अतिथि के रूप में आते हैं। इसके अलावा दिन में भोजन का कुछ हिस्सा कुत्ता, बिल्ली, कौवा और गाय को देना चाहिए क्योंकि इन जीवों को भोजन कराने से खाना सीधे पितरों के पास जाता है।

ब्राह्मणों को जरूर करें प्रसन्न

पितृपक्ष में श्राद्ध के समय ब्राह्मणों का खास महत्व है इसलिए इस दौरान ब्राह्मणों को जरूर भोजन कराएं और यथाशक्ति दान दें। ब्राह्मणों के भोजन के बाद घर में भी कुछ न खाएं। ब्राह्मणों को खीर या मिठाई जरूर खिलाएं। इसके अलावा ब्राह्मणों को लकड़ी, ऊन या कुशन की आसनी पर ही बैठाएं। ध्यान रखें लोहे के आसन पर ब्राह्मण को बैठाना उचित नहीं है।

सगे-सम्बन्धियों के प्रति सम्मान बनाएं रखें

परिवार में सम्बन्धों का खास महत्व होता है। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद कुछ खास तरह के सम्बन्धों जैसे दामाद, गुरू, नाती और मामा को सम्मान दें। उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराएं, उनकी प्रसन्नता से आप जीवन भर खुश रहेंगे।

सायंकाल में दीपक जलाना आपके लिए फायदेमंद होगा

पितृपक्ष के दौरान सभी बातों के साथ इस बात का भी ख्याल रखें कि शाम को घर बाहर दीपक जलाकर रख दें। इससे न केवल घर में खुशहाली आती है बल्कि पितृ भी प्रसन्न होते हैं। यही नहीं घर के पास में किसी पीपल के पेड़ के करीब दीपक जलाएं। ऐसी मान्यता है कि पीपल के पेड़ में देवताओं का वास होता है और दीपक जलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं।

भोजन परोसते समय भी बरतें सावधानी

पितृपक्ष में केवल भोजन बनाने का बल्कि उसे परोसने में भी सावधान रहें। पितृपक्ष के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराते समय थाली को दोनों हाथों से पकड़ें। अगर आप थाली को ढ़ंग से पकड़ते तो भोजन का अंश राक्षस के पास चला जाता है। ऐसे में ब्राह्मणों द्वारा किए गए भोजन को पितृ ग्रहण नहीं करते हैं।

श्राद्ध के दौरान खानपान में करें परहेज

श्राद्ध के दौरान खाने में लहसुन- प्याज का इस्तेमाल न करें बल्कि सात्विक भोजन ग्रहण करें। इसके अलावा मूली, मसूर की दाल, सरसों का साग, लौकी, चना, सत्तू, जीरा, काला नमक और खीरा के इस्तेमाल से भी बचें। मांस –मछली का सेवन भी पितृपक्ष में उचित नहीं है।

पंचवली भी करें

पितृपक्ष में पंचवली का विशेष महत्व है। धार्मिक कथाओं के अनुसार पितृपक्ष में श्राद्ध करने के बाद पिंड दान और तर्पण करके पंचवली करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। पंचवली के बिना श्राद्ध को पूर्ण नहीं माना जाता है। गाय को हमेशा पश्चिम दिशा में मुख कराके पत्ते पर देना चाहिए। कुत्ते को भोजन जमीन पर दिया जाता है। कौवे को पृथ्वी पर देवता, मनुष्य, यक्ष आदि को पत्ते पर खाना दिया जाता है। चीटियों और कीड़े, मकोड़े को पत्ते पर भोजन देना चाहिए।

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