कोरोना महामारी के बाद पूरी दुनिया में बदलाव आ रहा है। सभी देश अपनी अपनी चिंता करने लगे हैं। इसी क्रम में कई प्रदेश अपने राज्य के लोगों के लिए बड़े पैमाने पर राज्य की नौकरियों में आरक्षण करना चाहते हैं। बिहार के माइग्रेशन पर आधारित मनीआर्डर इकोनॉमी के लिये यह खतरे की घंटी है। वैसे में बिहार को भी अपने पांव पर खड़ा होना होगा। कोरोना काल में चालीस लाख से ज्यादा लोग मुंबई, दिल्ली, बंगलौर, चेन्नई, अहमदाबाद, सूरत जैसे शहरों से बिहार में अपने घर वापस आ गए हैं। आपने देखा किस बुरी हालत में ये बिहार लौटने को मजबूर हुए।
देश में खेती के क्षेत्र में सबसे कम छंटनी हुई है। मगर पंजाब को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में रह रहे प्रवासी बिहारी उद्योग धंधों में ही कार्यरत रहे हैं। बिहार के कृषि क्षेत्र ने वापस आये कई प्रवासियों को काम दिया। मगर सीमित क्षेत्रफल वाले कृषि क्षेत्र में बाहर से आये विशाल जनसमूह का रोजगार पाना असंभव है।
आज बिहार के अस्पताल, कॉलेज, स्कूल के साथ साथ बड़े संस्थान दम तोड़ रहे हैं। यहाँ तक की केंद्रीय संस्थाओं की हालात भी अच्छी नहीं। उद्योग लगभग नगण्य हैं। बिहार में जलसंसाधन में वर्षों से उचित प्रबंधन नहीं हो पाया है। अतः कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और सुखाड़ की समस्या रहती है।
मगर इन सब चुनौतियों के बावजूद आशा की किरण जीवित है। हमारे पास नदिओं का बहुत बड़ा जल खजाना है। हमारी अपनी समृद्धि का मूल प्राकृतिक संसाधन है। यह अक्षुण खजाना है। लॉकडाउन के दिनों में नदिओं की निर्मलता बढ़ी ही है इसके अविरल बहाव को बाधायें घटी हैं। जलसंसाधन के तहत गाद , पानी , मछली , शाक -सैवाल, इसके बहाव में से सिंचाई , पेय जल, बिजली, नौकायन से मॉल ढुलाई, पर्यटन इत्यादि के द्वारा लाखों के रोजगार की संभावना है। फिर कृषि में उत्पादकता एवं विकसित खेती द्वारा रोजगार के नए अवसर ढूढें जा सकते हैं। आर्गेनिक खेती एवं सब्जियों के उत्पादन को बिहार की तरक्की और समृधि का आधार बनाया जा सकता है।
छोटे उद्योगों को उचित माहौल देने से, दूसरे राज्यों से वापस आये श्रमिक कमाल कर सकते हैं। आई टी के क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा देने पर बड़ी संख्या में मेट्रो से प्रशिक्षित लड़के वापस आ सकते हैं। रोजगार की एक कड़ी बन सकती है।
बिहार के नवनिर्माण में रिटायर्ड लोगों के अनुभवों का भरपूर लाभ उठाना चाहिये। योजनाओं के क्रियान्वयन को ब्यूरोक्रेट्स के चंगुल से निकाल कर, इनक्लूसिव कमिटी बना कर, बहुत जल्द बड़े बदलाव किये जा सकते हैं।
हाँ यह सब संभव है, अगर हम चाहें।
(लेखक एक समाजसेवी हैं)