आज राम की बहस तेज है। लेकिन राम हैं कौन? महज एक पूजनीय भगवान या एक विचार या फिर जीवन पद्धति या राजकाज में सही मायने में धर्म का आग्रह।
बहस को सही परिप्रेक्ष्य मिलेगा, अगर हम राम और गाँधी के सम्बन्धों को समझने का प्रयास करेंगे।
श्रीराम ने जीवन भर अपने वचनों का पालन किया और गांधी ने व्रत का। एक हैं मर्यादा पुरूषोत्तम और एक हैं महात्मा। गांधी के रामराज्य की कल्पना, राम को आत्मसात् करने का ही परिणाम था। शायद संभव है, राम उनके रोम में जीवन के मध्याह्न में बसे हों, किन्तु सत्य उनके जीवन में सदैव था। इसीलिये, गांधी जब-जब व्रत में गये, राम का आदर्श उन्हें संभालता रहा।
वचन भंग न हो, इसके लिये राम ने हर तरह का त्याग किया। पारिवारिक आग्रहों एवं कठिनाइयों को भी दरकिनार किया ताकि समाज में नैतिकता शिथिल न पड़े। राम गाँधी के लिये सिर्फ पूजनीय नहीं थे, वो इनके आदर्श थे। शायद राम में गाँधी की यही निष्ठा, उनके मुख से निकले अंतिम शब्द "राम" के द्वारा व्यक्त हुई।
(लेखक एक समाजसेवी हैं)