कोरोना संक्रमण के दौरान त्याग तथा जश्न के त्यौहार बकरीद पर रहे सचेत

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बकरीद त्याग, पवित्रता, कुर्बानी , कर्तव्यनिष्ठा तथा जश्न का त्यौहार है। यह ईश्वर में आस्था का प्रतीक है तथा अपने कर्तव्यों को ईमानदारीपूर्वक निभाने का संदेश देता है। देश में कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए आप बकरीद पर रहें सचेत ताकि फीकी न पड़े त्यौहार की चमक।

जानें ईद के बारे में

हज की समाप्ति पर मनाया जाता है बकरीदखुशी का त्यौहार बकरीद आ गया है। इस्लामी साल में यूं तो दो तरह की ईद मनायी जाती है । उनमें एक है बकरीद या ईद-उल-उजहा कहा जाता है। दूसरी ईद को छोटी ईद, मीठी ईद या ईद-उल-फितर कहा जाता है। तीसरी ईद को ईद मिलाद्दुनबी कहा जाता है। यह ईद सबसे खास होती है क्योंकि इस ईद के दिन ही मुहम्मद साहब का जन्मदिन होता है। तीनों ईद त्याग, समर्पण, भाईचारे और मानवता का संकेत देती हैं। साथ ही यह त्यौहार आपस में मिलजुल कर रहने की शिक्षा देता है।

इस्लाम धर्म में मनुष्यों के लिए पांच कर्तव्य बताए गए हैं, हज उनमें से अंतिम कर्तव्य माना गया है। सभी मुसलमानों के लिए जीवन में एक बार हज करना आवश्यक माना गया है। हज भली-भांति सम्पन्न होने की खुशी में बकरीद मनाया जाता है। इस्लाम में त्याग की बहुत महत्ता है। ऐसी मान्यता है कि अल्लाह की राह में खर्च करो। यहां खर्च का मतलब भलाई और नेकी के काम से है। बकरीद में गरीब और दुखी लोगों का खास ख्याल रखा जाता है। इस त्यौहार में कुर्बानी के सामान को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्से को अपने पास रखकर बाकी हिस्सों को जरूरतमंद लोगों को दिया जाता है।

कोरोना काल में बकरीद

कोराना संक्रमण के कारण देश भर में बढ़ते मामलों को देखते हुए बकरीद के दिन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन जरूर करें। अगर आप कुर्बानी नहीं दे पा रहे हैं तो गरीबों में पैसे बांटें। घर में रहकर बकरीद मनाएं और अपने दोस्तों-रिश्तेदारों को सोशल मीडिया के जरिए बधाइयां दें।

बकरीद का चांद है खास

बकरीद में चांद को खास महत्व दिया जाता है। ईद उल अजहा का चांद जिस दिन दिखाई देता है उसके ठीक 10 वें दिन यह त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।

जानें बकरीद से जुड़ी कहानी

इस कहानी के मुताबिक अलाह ने

ब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी पत्नी और बच्चे को कनान लेकर आये और रेगिस्तान में छोड़ दे। इब्राहिम जाते हुए अपनी पत्नी और बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और खाना छोड़ दिया था लेकिन धीरे-धीरे सब खत्म हो गया। इब्राहिम की पत्नी अपने बेटे के लिए पानी की खोज करते हुए बेहोश हो गयी। उसी समय गब्रिअल नाम के फ़रिश्ते ने झरना पैदा किया जिससे इब्राहिम के बेटे की जान बची और दूसरे राहगीरों के लिए भी सुविधाजनक रहा। इस पवित्र जल को अल जम जम कहा जाता है। कुछ दिनों बाद अल्लाह ने इब्राहिम को आदेश दिया की मक्का में वो अल्लाह की शान में एक इमारत बनाये. चुने और गारे से मक्का में इमारत का निर्माण किया गया जहां मुसलमान समुदाय के लोग अल्लाह की शान में नमाज़ अता करने आते थे। इब्राहिम ने जो इमारत बनवायी उसका नाम काबा पड़ा। कुछ दिनों बाद अल जम जम जल स्त्रोत के कारण मक्का व्यापार का एक बड़ा केंद्र बन गया।

लेकिन इब्राहिम अल्लाह के इस आदेश से परेशान था कि उसे अपने सबसे प्यारी चीज कुर्बान करनी थी। दुनिया में उसके लिए सबसे प्यारा उसका बेटा था। इब्राहिम बेटे की कुर्बानी के लिए तो तैयार था पर अपने बेटे को ले जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। ऐसे में इब्राहिम ने अपने पुत्र को कुर्बानी की बात बताई। इस पर इब्राहिम के बेटे ने ना नहीं कहा उसे बेफ्रिक होकर कुर्बानी देने को कहा।

इस दौरान शैतान ने इब्राहिम और उसके परिवार को अल्लाह की बात मानने से रोकना चाहा। इब्राहिम ने पत्थर मार कर शैतान को भगाया। हज के दौरान आज भी शैतान को पत्थर  मार कर इस रस्म को दोहराया जाता है। जब भरे बाज़ार इब्राहिम अपने प्यारे पुत्र की कुर्बानी देने गया और जैसे ही उसने अपने बेटे का सर काटा तो देखा कि उसका बेटा सही सलामत है और जहां क़ुरबानी दी गयी उस जगह एक भेड़ का सर कटा है। इब्राहिम अपनी इस परीक्षा में सफल हुए। इसकी याद में अब बकरीद का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।

खास तरीके से बकरीद मनाते थे बादशाह जहांगीर

भारत में मुगल बादशाह बकरीद का त्यौहार खास तरीके से मनाते थे। वह बकरीद अपनी प्रजा के साथ मनाते थे। उनके साम्राज्य में बकरीद के हिन्दू वैष्णव लोग खान बनाते थे ताकि किसी हिन्दू की भावनाओं को ठेस न लगे और सभी खुश रहें। इसलिए ईद भारत में भाई-चारे का प्रतीक है। हमारे देश में ईद को मिलजुल मनाना भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का परिचायक है।

बकरीद का संदेश भी है खास

बकरीद केवल त्यौहार नहीं है बल्कि समाज में कर्तव्यनिष्ठा से जीवन जीने की शिक्षा भी देता है। इस त्यौहार में स्त्रियों की भूमिका को भी सराहा गया है। परिवार में बड़ों की जिम्मेदारी को महत्व देकर यहां बच्चों को भी जिम्मेदारी देने की बात की जाती है। यह त्यौहार त्याग का संदेश भी देता है इसीलिए बकरीद पर पहले नमाज पढ़ी जाती उसके बाद कुर्बानी देते हैं।

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