अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी ने देश के लोगो को एक उम्मीद की किरण दी थी और दिल्ली को ऐसे सब्जबाग दिखाए कि पूरा शहर उनके पीछे खड़ा हो गया हालाँकि इसमें कुछ गलत भी नहीं था। आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से भ्रष्टाचार से लेकर बाते कहीं और दिल्ली के विकास का खाका दिखाया उसने दिल्ली में इस पार्टी को एक मैंडेट दिया जिसका दोहराया जाना नामुमकिन है। लेकिन दिल्ली के लोगो को भरोसे के बदले क्या मिला? हर मामले में दिल्ली के लोग अपने को ठगा महसूस कर रहे है लेकिन शिक्षा को लेकर किया गया आम आदमी पार्टी का वादा न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि देश और दिल्ली के मुस्तकबिल के लिए बेहद खतरनाक है और इसे समझना जरुरी है।
बात स्कूलों से शुरू करते है। आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में ५०० नए स्कूल बनाये जाने की बात कही थी जिससे माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के स्कूलों वरीयता दी जानी थी जिसका उद्देश्य छात्रों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करना था लेकिन दिल्ली सरकार जब १४ फ़रवरी अपना ४ साल का कार्यकाल पूरा करेगी तो लगभग तीन साल के उपलब्ध आकड़ो के हिसाब से दिल्ली में अब तक सिर्फ ६ नए स्कूल अस्तित्व में आ सके है वास्तव में नए तो सिर्फ ३ स्कूल ही है ३ को पुनर्निर्मित किया जा रहा है। दावे से इतर १०० स्कूल प्रतिवर्ष के जवाब में एक स्कूल प्रतिवर्ष भी नहीं बन सका है। हालाँकि सरकार तीन साल में ५६९५ कक्षाओं के निर्माण की बात कह रही है जो प्रतिवर्ष के हिसाब से १८९८ हुई। आम आदमी पार्टी कि पुरजोर आलोचना का शिकार रही गुजरात सरकार ने वर्ष १९९८-९९ से २०११-१२ के बीच औसत ६६०३ प्रति वर्ष कक्षाओं की दर से ९२४५३ कक्षाएं निर्मित करवाई।
दिल्ली सरकार ने २०१७-१८ के बजट में १० हजार नई कक्षाएं, ४०० पुस्तकालय, १० प्ले स्कूल और १५६ स्कूलों में नर्सरी कक्षाएं शुरू करने की योजना की थी हालाँकि इसमें भी कोई खास प्रगति नजर नहीं आ रही है। इस मामले में दिल्ली सरकार गुजरात समेत कई अन्य राज्य सरकारों से काफी पीछे है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली सरकार के स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार के लिए आधारभूत ढांचे में व्यापक बदलाव की बात भी चुनावी वादों में कही थी जिस पर उसकी सरकार खरी साबित नहीं हो पाई है जिसमे कंप्यूटर, हाई-स्पीड इंटरनेट, डीटीसी स्कूलों की संख्या बढ़ाए जाने और १७००० नए शिक्षकों को भर्ती किया जाना शामिल था। लेकिन आलम यह है कि पिछले तीन सालों में एक भी शिक्षक नहीं नियुक्त किये जा सके है और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ४३ फीसद से ज्यादा पद रिक्त पड़े है यहाँ तक कि उच्च न्यायलय की फटकार के बाद भी कोई नियुक्ति नहीं हो पाई है । संविदा शिक्षकों को लेकर आंदोलन करने वाली पार्टी ने उन्ही के लिए पिछले लगभग ४ सालो में कुछ नहीं किया। केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत स्कूलों में कंप्यूटर तो पहुंच लेकिन ज्यादातर जगहों में इंटरनेट उपलब्ध नहीं है।
अपने वादे के अनुसार दिल्ली के अभिभावकों को गैर सरकारी स्कूलों में बढ़ी हुई फीस और कैपिटेशन फीस से रहत दिलाने में भी यह सरकार नाकामयाब रही है। सरकार ने स्कूलों के बही खातों को ऑनलाइन किये जाने की बात भी जनता से की थी लेकिन सरकार ने शिक्षकों के बेतन बढ़ाने और बकाया दिए जाने के नाम पर २०१७ में फीस बढ़ाये जाने की अनुमति दे दी थी और शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर स्कूलों के द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी आधी अधूरी है। नौनिहालों को नशे की आदत से मुक्त कराये जाने कि कोशिशों के तहत उपयुक्त कॉउन्सिलिंग, नशा निरोधी केंद्र बढ़ाए जाने की बात समेत मनोवैज्ञानिक सलाहकारों की मदद की बात सरकार पूरी तरह से भूल गई है और इस पर चर्चा करना तक गवारा नहीं करती।
दिल्ली में शिक्षा को पूर्ण समावेशी बनाने कि कोशिशों के तहत दिव्यांगों के लिए विशेष शिक्षकों की नियुक्ति कर देश के सामने मिसाल बनने की बात भी दिल्ली सरकार पूरी तरह से भूल गई है वह यह भी नहीं याद रख पाई कि इन दिव्यांगों को गैर सरकारी संगठनो के माध्यम से आर्थिक मदद का वादा किया गया था। लेकिंग इसका खामियाजा दिव्यांगों को भुगतना पड़ रहा है क्योंकि शिक्षकों की अनुपलब्धता के कारण ६० फीसद बच्चे स्कूल छोड़ देते है। उपलब्ध आकड़ो के अनुसार ९वी और १०वी कक्षा में १२०० दिव्यांग छात्र थे जो ११वी १२वी में सिर्फ ३०० बचे। दिल्ली उच्च न्यायलय के आदेश के बावजूद दिव्यांग छात्रों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति का मामला फाइलों में दब कर रह गया है।
हर साल की तरह दिल्ली के ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रो के छात्र २० नए महाविद्यालय खोले जाने की राह देखते रहे लेकिन अब तक एक भी महाविद्यालय के खोले जाने का काम शुरू नहीं हो पाया है और यहाँ तक कि आंबेडकर विश्वविद्यालय में सीटों की संख्या दो गुनी किये जाने की बात भी सिर्फ वादों तक सिमट कर रह गई है क्योंकि न तो सरकार के पास कोई रणनीति ही है और न ही इच्छा शक्ति नजर आ रही है। आंबेडकर विश्वविद्यालय के तीन नए कैंपस खोले जाने सम्बंधित फाइलें भी धूल फाँक रही है।
हायर एजुकेशन गॉरन्टी स्कीम के वादे के तहत किसी भी आर्थिक पृष्ठभूमि के छात्र और छात्राओं को ऋण दिए जाने की गॉरन्टी दिल्ली सरकार को लेनी थी और योजना के तहत किसी का भी आवेदन निरस्त नहीं किए जाने का वायदा किया गया था। सरकार ने ९ सितम्बर २०१५ को औपचारिक रूप से २५ लोगो को ऋण उपलब्ध कराके इस योजना को शुरू किया था लेकिन अब तक सिर्फ ५२ लोग लाभान्वित हुए है। यहाँ तक कि अधिकतं १० लाख सीमा होने के बावजूद सिर्फ २ से २.५ लाख तक ही ऋण लोगो को आबंटित हुए है और इस मद के लिए निर्धारित २० करोड़ का उपयोग नहीं हो पाया है। लगभग १० हजार आवेदन अभी विचाराधीन है।
आम आदमी पार्टी ने वादों से उलट ३००० सरकारी स्कूलों के मैदान को छुट्टी के बाद युवाओ और बच्चों के लिए खोल देने की बजाय दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ३ मई, २०१७ को इन्हे स्थानीय और क्षेत्रीय संगठनो को किराये पर दिए जाने की नई नीति बनाई है जिसके तहत दो दिन और सात दिन की बुकिंग का प्रावधान किया गया है जिसने २०० से ७०० और २०० से १००० रूपये किराया लिए जाने का प्रावधान किया गया है इसके अलावा ५००० रूपये सिक्योरिटी भी जमा करनी होगी।
लेकिन इन सबसे अलग दिल्ली सरकार ने छात्रों को सबसे ज्यादा नुक़सान पहुंचने का काम किया है उसके अंतर्गत शिक्षा विभाग ने २०१५-१६ में ९वी कक्षा में अनुत्तीर्ण हुए लगभग १ लाख छात्रों को पत्राचार में स्थान्तरित कर दिया जिसमे से ३८००० छात्रों ने तो पत्राचार में प्रवेश ही नहीं लिया और ज्यादातर स्कूली शिक्षा से बाहर हो गए। बाकी बचे ६२००० छात्रों में से लगभग २५०० कम्पार्टमेंट में उत्तीर्ण हो सके और जो बाकि बचे उनका भी वही हश्र हुआ जो ३८००० छात्रों का हुआ। सरकार की दिल्ली के सरकारी विद्यालयों का परिणाम अच्छा दिखाने की मुहिम के तहत ९वी के १४३३ विद्यार्थिओं को पत्राचार में स्थान्तरित कर दिया।
दिल्ली के शिक्षा विभाग ने गुणवत्ता सुधारने के नाम पर छात्रों को तीन भागो में -- अच्छे, माध्यम और पिछड़े वर्गों में बांटकर सामान शिक्षा के सिद्धांत को ही धता बता दिया है। इस प्रक्रिया से शिक्षा में सुधार की बात तो दूर छात्रों के मन में हीन भावना जरूर पैदा कर दी है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् के आकड़ो के अनुसार पिछले दो सालों में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ९८००० बच्चे ड्राप आउट हुए है और लगभग 1 लाख बच्चे प्राइवेट स्कूल में भर्ती हुए है जो दिल्ली सरकार की शिक्षा निति का हाल बयां करने के लिए काफी है। लम्बे चौड़े दावे करने वाली आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार न्यायमूर्ति अनिल देव सिंह समिति की शिफारिशें भी नहीं लगवा पाई है तो जनता की उम्मीदों का क्या ?
(लेखक भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता हैं)