नई दिल्ली : गणेश चातुर्शी हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारो में से एक है। यह भारत के अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरह से मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में यह अद्भुत रूप से मनाया जाता है। इस महोत्सव पर भगवान गणेश की सुन्दर प्रतिमा घरो व मंदिरों में स्थापित की जाती है। और दस दिनों तक भगवान गणेश की स्तुति की जाती है। महाराष्ट्र में भगवान् गणेश की सबसे विशाल मूर्तियाँ स्थापित की जाती है, भगतों की विशाल भीड़ जुड़ जाती है जो भगवान गणेश की रथ यात्रा में शामिल होते है। ऐसा नही कि और किसी राज्य में गणेश चातुर्शी का महोत्सव नही बनाया जाता है।
गोवा, केरल, बंगाल और तमिलनाडु में भी यह त्यौहार खूब धूम धाम से मनाया जाता है। यह दिन हम सब लोगो के लिए इसलिए खास है क्योंकि इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इनके जन्म के पीछे भी कई रहस्य छिपे हुए है। विद्वानो का कहना है की माँ पार्वती ने अपने शारीर के महल से मैल से भगवान गणेश का निर्माण किया था बताया जाता है कि एक बार माता पार्वती स्नान करने गई हुई थी।
तो उन्होंने भगवान गणेश को आदेश दिया कि कोई अन्दर कोई न आये। तो गणेश जी माँ पार्वती की पहरेदारी करने लगते है लेकिन होना तो कुछ और ही था। कुछ समय पश्चात ही भगवान शिव का आगमन होता है और गणेश भगवान उनको अन्दर जाने से रोकते है इस बात से भगवान शिव क्रोधित हो जाते है और उनकी गर्दन काट देते है
जब इस बात का माँ पार्वती को पता चलता है तो वो भोले नाथ से क्रोधित होकर अपना पुत्र मांगने लगती है तो भगवान शिव ने हाथी का सर गणेश जी को लगा उन्हें पुनार्जीवत किया तभी से गणेश भगवान को गजानन भी कहा जाता है।गणेश चातुर्शी का महाराष्ट्र निवासी बहुत बेसवरी से इंतजार करते तभी तो उनकी प्रतिमा को बनाने का कार्यक्रम महीनो पहले से चलता रहता है।
भगवान गणेश को भोजन बहुत पसंद था उनका मनपसंद भोग मोदक माना जाता है। तो इस त्योहार पर भगवान गणेश को तरह तरह के मोदको का भोग लगाया जाता है सरकार द्वारा भी इस त्यौहार पर सुरक्षा के विशेष इंतजाम किये जाते है ताकि जान व माल का कोई नुकसान न हो।
और जब बाप्पा को विदा करने का समय आता है तो विदा भी पुरे धूम धाम से किया जाता है भगतो का मानना है की बाप्पा हमारे कष्टों को हरने के लिए आते है और अपने साथ साथ हमारे कष्टों को भी ले जाते है इसलिए महाराष्ट्र भाषा में इन्हें विघ्नहरता भी कहा जाता है