कोयंबत्तूर में एक ट्रॉमा कॉन्फ़्रेन्स अटेंड करने गया था।
कॉन्फ़्रेन्स के बाद ईशा योगा आश्रम में दो दिन रहा।
फिर आज कोयंबत्तूर से हैदराबाद और फिर हैदराबाद से पटना लौट रहा हूँ।
हैदराबाद से पटना की इंडिगो की फ़्लाइट कई दिनों के बाद अत्यधिक रोमांचकारी रही।
मैंने अपना एक छोटा ब्रीफ़्केस , जिसे आराम से प्लेन के अंदर कैबिन बिन में रखा जा सकता था, को चेक इन कर दिया।
एक छोटा हैंडबैग लेकर बोर्ड किया।
मेरी जगह पर जरा सी भी जगह ओवरहेड बिन में नही थी।
लेकिन मेरा हैंड बैग काफ़ी छोटा था। मैंने किसी तरह जगह नहीं होने के बावजूद वहाँ फ़िट कर दिया।
प्लेन में अत्यधिक गर्मी थी।
AC को ऑन नहीं किया गया था, ईंधन बचाने केलिये।
ख़ैर, चुपचाप अपनी जगह बैठ गया, सीट बेल्ट बांध ली।
5 मिनट बाद एक सज़्ज़न आए। मेरा बैग हटा दिया। अपना सूटकेस वहाँ सबके बैग इधर-उधर करके घुसा दिया। फिर मेरा बैग सामने से ही जोर से कोचने लगे। जगह थी नहीं, अतः जोर-ज़बरदस्ती मेरे बैग को इस तंग सी जगह में ठूँस दिया, बैग किनारे पर ही लटक रहा निस्सहाय मुझे निहार रहा था, कभी भी नीचे वाले के सर पर गिर जाता। मैं धीरज पूर्वक देखता रहा। फिर उठा, उनसे पूछा।
ये आप क्या करना चाह रहे हैं ?
अपना बैग एडजस्ट कीजिए, लेकिन इस तरह किसी दूसरे के बैग के साथ जोर-ज़बरदस्ती नहीं कर सकते। उस बैग के अंदर का सामान टूट सकता है। बिहार के सज़्ज़न थे। अपनी गलती स्वीकार करने से हार हो जाती ! लगे मुझसे बकझक करने। उनके साथ एक और व्यक्ति , हट्टे-कट्ठे, हिष्ट-पुश्ट, रंगबाज़ी पर उतर आये।
ठेठ बिहारी अंग्रेज़ी से मुझे भूँज डाला।
फ़्लाइट इज फुल्ल। केन नोट सी?
बैग कहीं न कहीं तो डालेंगे ही।
ख़ैर मैं समझ गया।
भैंस के आगे बीन बजाओ, भैंस लगे पघूराय!
३० सेकंड का गरम बहस और फिर शांति।
इधर प्लेन के अंधर अत्यधिक गर्मी !
वैसे हैदराबाद का मौसम अच्छा था, पिछले दो दिनों से लगातार वारिश जो हो रही थी।
उस गर्मी में सारे यात्री बार-बार AC के बटन को क्लाक्वायज़ और ऐंटी क्लॉकवाइज़ घुमा फिरा रहे थे।
लेकिन सब बेकार!
तभी एक और सज़्ज़न इंडिगो को गलियाते अंदर प्रविष्ट हुए।
“ बदमाशी करता है, मुझे प्लेन से बाहर लेकर चला गया। मैं वर्षों से प्लेन में उड़ता हूँ। मस्कट में काम करता हूँ। कहता है आप लाइटर और बैटरी प्लेन में नहीं ले जा सकते। दिल्ली एअरपोर्ट पर कभी नहीं रोका। यहाँ हमको तंग किया।
सबको परेशान करता है।
मैंने कहा आप लाइटर और बैटरी क्यों लाते हैं ?
बैटरी चेक इन बैग में अलाउ नहीं करते हैं।
बोले आप से ज़्यादा उड़ते हैं। एकदम अलाउ करते हैं।
क्या समझते हैं, तंग करते हैं हमको।
मेरे पीछे एक स्मार्ट बुजुर्ग सज़्ज़न थे। अपने आप को रोक नहीं सके। बोले,” आप ठीक कह रहे हैं। साले पर एक करोड़ का केस ठोक दीजिए।
तब समझेगा कि बैटरी और लाइटर रोकने से क्या पापड़ बेलना पड़ता है ?
थोड़ी देर गरमा-गर्मी करने के बाद वे शांतचित्त हो गए,
रेस्ट इन पीस लाइटर महोदय या यूँ समझिए फ़ाइटर महोदय !
इधर कड़ाके की गर्मी और उमस प्लेन के अंधर।
सारे यात्री परेशान, कई ताऊ में !
पारा चोटी पर !
एअर होस्टेस से अपनी परेशानी बतायी।
एअर होस्टेस ने खेद प्रकट करते हुए कहा, ”थोड़ी देर केलिये बर्दाश्त कर लीजिए। उड़ते ही सारी गर्मी ख़त्म हो जाएगी।”
लगभग ४० मिनट बाद विमान हवा में उड़ा।
सारी गर्मी ख़त्म।
एअर होस्टेस १४० रुपए की चाई और २०० का sandwich एवं अन्य तमाम खाद्य पदार्थों और जलपान की बिक्री में पूरी तत्परता से जुट गयीं । भीषण गर्मी में झुलसे सारे यात्रीगण ख़ुशी-ख़ुशी खाद्य पदार्थों की ख़रीद-बिक्री में लग गए ।
सच ही है, सारी गर्मी जमीन की, जमीन पर ही।
एक बार उड़े क्या, सारी गर्मी छू मंतर !
लोग उड़ने लगे, स्मार्ट फ़ोन चलाने लगे, AC का आनंद लेने लगे, लेकिन विनम्रता, व्यवहार , बात करने की तमीज़, तहज़ीब ,
एक दूसरे के प्रति समवेदनशीलता सब वही !
ट्रेन वाली !
याद आ गए वे दिन जब ट्रेन के स्लीपर क्लास में अपने बड़े बड़े बोरा और बक्सा घुसाने केलिये न जाने कितने विश्वयुद्ध हुआ करते थे।
प्लेन और ट्रेन का फ़र्क़ अब मिट चुका।
अब सब बराबर हैं।
सब स्वतंत्र हैं, सबको पूरा अधिकार है कैबिन बिन में अपने सामान जैसे मर्ज़ी है, जहाँ मर्ज़ी है कोचने का, ठुसने का !
ज़्यादा बनिएगा तो अंग्रेज़ी में डाँट पड़ेगी।
विशेष परिस्थिति में मार भी पड़ सकती है।
मुबारक हो ,
समाजवाद आ गया !
ट्रेन और प्लेन का भेद मिट गया !
इंडिया ट्रुली/truly शाइनिंग !
मोदी जी मुबारक हो !
जानम देख लो,
मिट गयी दूरियाँ!
हम हियाँ हूँ, हियाँ हूँ,
हिया हूँ, हियाँ 



दिल पे मत लीजिए,
जीवन के हर रंग के ……
मजे लीजिये ये ये !