New Delhi: दुनिया भर में कोरोना वायरस का खतरा बढ़ा हुआ है, ऐसे में हम सभी डरे हुए हैं। चैत्र नवरात्र शुरू होने वाला है, इसमें हम सभी अपने आराध्या देवी को घर में रह कर प्रसन्न करने का प्रयास कर सकते हैं, तो आइए हम आपको कुछ खास तरीके बताते हैं जिनके द्वापा घर में रहकर नवरात्र में नौ देवियों की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
पहले दिन करें मां शैलपुत्री की पूजा
नवरात्र के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री का रूप अद्भुत होता है, उन्हें वृषारूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। पहले दिन कलश स्थापना भी की जाती है। इस बार कलश की स्थापना का मुहूर्त 25 मार्च 2020 को सुबह 6 बजकर 19 मिनट से सुबह 7 बजकर 17 मिनट तक है। घर में मंदिर के पास किसी पवित्र स्थल पर कलश स्थापित करें। कलश के पास नौ दिन तक अखंड ज्योति जलाते रहें।
कलश स्थापना करने के बाद आप हमेशा इसका ख्याल रखें। कलश का मुंह कभी भी खुला न रखें। हमेशा कलश को किसी बर्तन से ढक कर रखें और बर्तन को कभी भी खाली नहीं छोड़े उसमें चावल भर दें। चावल के बीच में एक नारियल भी रखें। पूजा के बाद यहां लौंग-इलायची रख दें।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से मिलेगी सिद्धि
नवरात्र के दूसरे दिन दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। मां ब्रह्मचारिणी पूर्ण रूप से ज्योतिमय हैं। देवी संसार से अलग होकर तपस्या करती रहती हैं। देवी का चेहरा दिव्यवान हैं और उनके हाथों में अक्ष माला तथा कमंडल रहता है। मां ब्रह्मचारिणी की खास तरह से पूजा की जाती है। सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर नहा लें और साफ कपड़े पहनें। उसके बाद देवी को स्नान करा कर धूप और दीप अर्पित करें। देवी की आराधना के बाद नवग्रह की भी पूजा करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
भय का नाश करती है मां चंद्रघंटा की पूजा
मां चंद्रघंटा की पूजा नवरात्र के तीसरे दिन की जाती है। देवी भक्तों को दीर्घायु और आत्मविश्वास से पूर्ण होने का आर्शीवाद देती हैं। मां दुर्गा का यह तीसरा रूप असुरों को मारने के लिए जाना जाता है। इनका रूप अद्भुत होता है और इनके हाथों में सदैव त्रिशूल, गदा, तलवार और धनुष रहता है। देवी का यह रूप परम कल्याणकारी और शांति देने वाला है। माथे पर अर्धचंद्राकार होने के कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। देवी चंद्रघंटा का आर्शीवाद पाने हेतु मंत्र का 108 बार जाप करें। इससे देवी प्रसन्न होगी तथा आशीष देंगी।
"या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।"
यश तथा बल प्रदान करती हैं मां कुष्मांडा
आदिस्वरूपा तथा आदिशक्ति कही जाने वाली मां कुष्मांडा की पूजा नवरात्र के चौथे दिन की जाती है। देवी कुष्मांडा का रूप अदभुत हैं और यह अष्टभुजा धारी हैं। मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां कुष्मांडा की पूजा करें। मां कुष्मांडा को योग-ध्यान की देवी कहा जाता है। इसलिए देवी की आराधना के अलावा मंत्र का मानसिक रूप से जाप करें। दिन में कम से कम पांच बार देवी कवच का पाठ करें।
भक्तों हेतु मोक्ष के द्वार खोलती है मां स्कंदमाता
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है। देवी बहुत दयालु हैं तथा भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करती हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनका रंग शुभ्र है। देवी स्कंदमाता हमेशा कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है तथा सदैव शेर पर सवार रहती हैं। इनकी कृपा पाने के लिए आप मां स्कंदमाता का पाठ करें।
मां कात्यायनी की उपासना से मिलता है मोक्ष
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। मां कात्यायनी के आर्शीवाद से भक्त को चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। मां कात्यायनी अद्भुत स्वरूपा हैं। नवरात्र के छठे दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। मां कात्यायनी का रूप भव्य तथा प्रभावशाली होता है और वह सोने के समान आभामान हैं। मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए खास तरह की पूजा करें। सबसे पहले देवी मां को प्रणाम कर मंत्र का जाप करें। नवरात्र के छठे दिन दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। देवी के साथ ही शंकर जी की भी पूजा करें।
भक्तों की रक्षा करती हैं मां कालरात्रि
दुर्गा के सातवें रूप को मां कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के सातवें दिन इनकी पूजा होती है। सातवें दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र में स्थिर कर पूजा करनी चाहिए। देवी कालरात्रि को अन्य कई नामों से जाना जाता है जिनमें भद्रकाली, काली, महाकाली, भैरवी, मृत्यु, रुद्राणी, चामुंडा, दुर्गा और चंडी प्रमुख हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी के इस रूप से सभी राक्षस,भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। देवी कालरात्रि ने राक्षसों के राजा रक्तबीज के वध हेतु अवतार लिया था। मां की आराधना से घर में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही देवी कालरात्रि को याद करने से राक्षस तथा दैत्य दूर हो जाते हैं।
अष्टमी के दिन होती है महागौरी की पूजा
महागौरी को श्वेताम्बरा भी कहा जाता है तथा नवरात्र के आठवें दिन इनकी आराधना होती है। अष्टमी पूरे देश में धूमधाम से मनायी जाती है और कन्या-पूजन भी किया जाता है। महागौरी गौर वर्ण की हैं और इनके आभूषण, वस्त्र सफेद रंग के हैं। इनकी उम्र आठ साल की मानी गयी है। महागौरी को वृषारूढ़ा भी कहते हैं। देवी दुर्गा के आठवें रूप की पूजा करने से सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। महागौरी की आराधना से दांपत्य जीवन, व्यापार, धन और सुख-समृद्धि बढ़ती है। जो भक्त कला तथा अभिनय में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें महागौरी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। साथ ही इनकी पूजा से त्वचा से जुड़े रोग भी खत्म हो जाते हैं।
सिद्धिदात्री भक्तों को देती हैं सभी प्रकार के वरदान
नवरात्र के आखिरी दिन सिद्धिदात्री की पूजा होती है। मां सिद्धिदात्री नवदुर्गा का अंतिम स्वरूप हैं। यह सभी प्रकार के वरदान तथा सिद्धियां देती हैं। देवी कमल-पुष्प पर विराजमान हैं और इनके हाथों में शंख, गदा, पदम और चक्र है। ऐसा माना जाता है कि देवी सिद्धिदात्री की कृपा से गंधर्व, नाग, किन्नर, यक्ष और देवी-देवता सभी सिद्धियां प्राप्त करते हैं। महानवमी के दिन स्नान कर, साफ कपड़े पहनें। उसके बाद मंदिर के सामने एक दीपक जलाएं। साथ ही मंत्र का जाप करें।
दुनिया भर में कोरोना वायरस के फैलने से भय और खौफ का माहौल बना हुआ है लेकिन इस समस्या में भी आप धैर्य रखकर घर में रहें और अपनी आराध्या देवी की उपासना करें। इससे कठिनाइयां खत्म होंगी और जीवन में नयी ऊर्जा का संचार होगा।