गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. इस फैसले के मुताबिक अब किसी भी महिला को गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति लेने की जरूरत नहीं है.
महिला सशक्तिकरण के लिए सुप्रीमकोर्ट का यह फैसला अहम है. एक तलाकशुदा व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिक महिला को बच्चें को जन्म देने या फिर गर्भपात कराने का पूर्ण अधिकार है.
इस दौरान सुप्रीमकोर्ट ने यह भी कहा कि जरूरी नहीं की महिला अपने पति की सहमति से ही गर्भपात कराएं.
आप को बता दे कि याचिका में व्यक्ति ने अपनी पूर्व पत्नी के साथ-साथ उसके माता-पिता भाई और दो डॉक्टरों पर अवैध गर्भपात का आरोप लगाया था. याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी पर बिना उसकी सहमति के गर्भपात कराए जानें का आरोप लगाया था.
युवक की शादी 1994 में हुई थी. और 1995 में महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया. और 1999 में दोनों के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया. झगड़ें के बाद महिला बच्चे को लेकर अपने माता-पिता के पास आ गई.
2002 में दोनों फिर से साथ रहने लगे. लेकिन 2003 में दोनों के बीच झगड़ा हो गया. और दोनों का तलाक भी हो गया. लेकिन इस दौरान महिला गर्भवती हो गई. जब महिला और उसके परिवार वालो ने उसका गर्भपात करा दिया.
तो व्यक्ति ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में 30 लाख रूपयें का मुआवजा की मांग करते हुए याचिका दायर कर दी. हाईकोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए महिला के पझ में फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट के फैसले पर ही सुप्रीमकोर्ट ने भी मोहर लगाई है.