सूर्य पूजा के साथ छठ मैया की पूजा आखिर क्यों, आइये विस्तार से जानें

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*छठ मैया कौन-सी देवी हैं?*
सूर्य के साथ षष्ठीु देवी की पूजा क्योंा?

कई लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि छठ या सूर्यषष्‍ठी व्रत में सूर्य की पूजा की जाती है, तो साथ-साथ छठ मैया की भी पूजा क्‍यों की जाती है?

*छठ मैया का पुराणों में कोई वर्णन मिलता है क्‍या?*

वैसे तो छठ अब केवल बिहार का ही प्रसिद्ध लोकपर्व नहीं रह गया है. इसका फैलाव देश-विदेश के उन सभी भागों में हो गया है, जहां इस प्रदेश के लोग जाकर बस गए हैं. इसके बावजूद बहुत बड़ी आबादी इस व्रत की मौलिक बातों से अनजान है.
आगे इन्‍हीं सवालों से जुड़ी *प्रामाणिक जानकारी* विस्‍तार से दी गई है.

*पुराणों में षष्‍ठी माता का परिचय:*

श्‍वेताश्‍वतरोपनिषद् में बताया गया है कि परमात्मा ने सृष्‍ट‍ि रचने के लिए स्‍वयं को दो भागों में बांटा.दाहिने भाग से पुरुष, बाएं भाग से प्रकृति का रूप सामने आया.
ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को *देवसेना* कहा गया है.

प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है.
पुराण के अनुसार, ये देवी सभी *बालकों की रक्षा* करती हैं और उन्‍हें लंबी आयु देती हैं.
''षष्‍ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्‍ठी प्रकीर्तिता |
बालकाधिष्‍ठातृदेवी विष्‍णुमाया च बालदा ||
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी |
सततं शिशुपार्श्‍वस्‍था योगेन सिद्ध‍ियोगिनी'' ||
(ब्रह्मवैवर्तपुराण/प्रकृतिखंड)

षष्‍ठी देवी को ही स्‍थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है.
षष्‍ठी देवी को *ब्रह्मा की मानसपुत्री* भी कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं.
आज भी देश के बड़े भाग में बच्‍चों के जन्‍म के छठे दिन षष्‍ठी पूजा या छठी पूजा का चलन है. पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्‍यायनी भी है. इनकी पूजा नवरात्र में षष्‍ठी तिथि‍ को होती है.

*सूर्य का षष्‍ठी के दिन पूजन का महत्‍व:*

हमारे धर्मग्रथों में हर देवी-देवता की पूजा के लिए कुछ विशेष तिथियां बताई गई हैं. उदाहरण के लिए, गणेश की पूजा चतुर्थी को, विष्‍णु की पूजा एकादशी को किए जाने का विधान है.इसी तरह सूर्य की पूजा के साथ सप्‍तमी तिथि‍ जुड़ी है.

सूर्य सप्‍तमी, रथ सप्‍तमी जैसे शब्‍दों से यह स्‍पष्‍ट है. लेकिन छठ में सूर्य का षष्‍ठी के दिन पूजन *अनोखी बात* है.सूर्यषष्‍ठी व्रत में ब्रह्म और शक्‍त‍ि (प्रकृति और उनके अंश षष्‍ठी देवी), दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है.

इसलिए व्रत करने वालों को दोनों की पूजा का फल मिलता है. यही बात इस पूजा को सबसे खास बनाती है.
महिलाओं ने छठ के लोकगीतों में इस पौराणिक परंपरा को जीवित रखा है.

दो लाइनें देखिए:

''अन-धन सोनवा लागी पूजी देवलघरवा हे,
पुत्र लागी करीं हम छठी के बरतिया हे '
दोनों की पूजा साथ-साथ किए जाने का उद्देश्‍य लोकगीतों से भी स्‍पष्‍ट है.
इसमें व्रती कह रही हैं कि वे अन्‍न-धन, संपत्ति‍ आदि के लिए सूर्य देवता की पूजा कर रही हैं.
संतान के लिए ममतामयी छठी माता या षष्‍ठी पूजन कर रही हैं.
इस तरह सूर्य और षष्‍ठी देवी की साथ-साथ पूजा किए जाने की परंपरा और इसके पीछे का कारण साफ हो जाता है.
पुराण के विवरण से इसकी प्रामाणिकता भी स्‍पष्‍ट