इलाहबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट के जजमेंट पर दी टिप्पणी, कहा गणित के टीचर और फिल्म डायरेक्टर जैसा किया व्यवहार

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देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री में कल इलाहबाद हाईकोर्ट ने आरुषि के माता पिता को बरी कर दिया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में निचली अदालत के फैसले को लेकर कठोर टिप्पणी की है.

हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने परिस्थिति साक्ष्यों के आधार पर ही फैसला सुना दिया. इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हत्या की वजह को लेकर स्थिती साफ़ नहीं है. हाईकोर्ट का कहना है कि सीबीआई अदालत ने कानून के बुनियादी नियम की अनदेखी की है.

हाईकोर्ट ने सीबीआई के जज पर टिप्पणी करतें हुए कहा कि सीबीआई कोर्ट के जज को ऐसा लगता है कि कानून की सही तरह से जानकारी तक नहीं थी. हाईकोर्ट ने कहा कि आरुषि मामलें को मैथ की प्रोब्लम की तरह से सॉल्व किया. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था.

क्योंकि कानून में सबूत और गवाह अहम माने जाते है. लेकिन सीबीआई ने इस केस को एक पहेली की तरहा सॉल्व किया. सीबीआई कोर्ट ने कहानी की तरह खुद ही मान लिया की उस रात क्या हुआ था. जबकि सीबीआई कोर्ट के जज को खुद पर सयंम रखते हुए सोचना चाहिए था.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सीबीआई कोर्ट के जज पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ट्रायल जज गणित के अध्यापक की तरह व्यवहार नहीं कर सकता. ट्रायल जज ने उसे एक फिल्म निर्देशक के तरह सोच लिया.

वहीं आरुषि के माता-पिता राजेश तलवार और नुपुर तलवार अभी गाजियाबाद की डासना जेल में बंद है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्हें आज रिहा किया जा सकता है. जानकारी के मुताबिक तलवार दंपत्ति हाईकोर्ट के फैसले से खुश है.

पुरे देश को हिलाकर रख देने वाला यह केस 2008 में हुआ था. 16 मई 2008 को नोएडा के जलवायु विहार इलाके में 14 साल की आरुषि का शव उसके घर से ही बरामद हुआ था. और उसके अगले ही दिन पड़ोसी की छत से नौकर हेमराज का भी शव मिला था.

जिसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने आरुषि के पिता को गिरफ्तार किया था. जिसके बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने यह केस की जाँच सीबीआई को सौप दी.

और जिसके बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने आरुषि और नौकर हेमराज की ह्त्या का दोषी आरुषि के पिता राजेश तलवार और माता नुपुर तलवार को माना था. और उन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी. सीबीआई फैसले के खिलाफ राजेश तलवार और नुपुर तलवार ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी. इलाहबाद हाईकोर्ट का यह फैसला चौंकाता नहीं है क्योंकि सीबीआई ने कोई चौंकाने वाली चीज ढूंढी ही नहीं थी.

इसलिए नौ साल चार महीने और 28  दिन बाद अब ये सवाल फिर से सिर उठाएगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मार? सीबीआई के धुरंधर अफसर अरुण कुमार और उनकी टीम क्या इस सवाल का जवाब देना चाहेगी? आज देश यही जानना चाहता है.