जनसंख्या नियंत्रण कानून पर है चर्चा जारी

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आज़ादी के वक़्त भारत की स्थिति ठीक वैसी थी जैसी किसी अबोध बालक की हो जाती है जब वह किसी मेले मे खो जाता है। उस समय हमारे देश की आबादी केवल 34 करोड़ थी जिनका पेट भरने के लिए भी हम अन्य देशों पर आश्रित थे। भारत की साक्षरता दर मात्र 12%, जीडीपी 2.7 लाख करोड़ की ही थी। आज आज़ादी को 73 साल पूरे हो गए हैं और हमने कई क्षेत्र में तरक्की कर ली है, कहां हमें अनाज तक को आयात करना पड़ता था और कहां अब हम निर्यात करने की स्थिति मे आ चुके हैं। हमारी साक्षरता दर 74.04% हो गई है और 193 देशों में भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन इतने सालों बाद भी जो एक चीज़ हमारे विकास में बाधक बनी रही वह है हमारी बढ़ती जनसंख्या । 139 करोड़ आबादी के साथ भारत विश्व का दूसरा सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला देश बन चुका है और अगर एक्सपर्ट्स की मानें तो बहुत जल्द हम पहले स्थान पर आ जाएंगे।

चूंकि हमारे देश के दिग्गज नेताओं ने इस बात का अंदाज़ा बहुत पहले ही लगा लिया था, शुरुआत से ही बहुत सारे जनसंख्या नियंत्रण स्कीम और पॉलिसी जैसे “हम दो, हमारे दो”का सहारा ले कर वे इस समस्या को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। इनके बावजूद भी जनसंख्या में कोई विशेष गिरावट नहीं देखी। कारण वश हमारे देश को किसी ठोस कदम की ज़रूरत थी । ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण कानून, 2020 एक ऐसा ही ठोस कदम है। इस कानून के तहत कई ऐसे नियमों को लागू करने का प्रावधान है जो दो या दो से कम बच्चों को जन्म देने वाले दंपति को कई सारे फ़ायदे मुहैया कराएगी।

विश्व जनसंख्या दिवस यानी 11 जुलाई को इस कानून के ड्राफ्ट को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया गया और जनता से राय मांगी गई। जहां दो या दो से कम बच्चों वाले अभिभावकों को सुविधाएं दी जाएंगी ,वहीं दो से अधिक बच्चों वाले अभिभावकों को कई सुविधाओं से वंचित रहना होगा। इस कानून के तहत दो से कम बच्चे वाले अभिभावकों को सरकारी नौकरी के साथ- साथ बिजली, पानी आदि के टैक्सों में भी राहत दी जाएगी जो गरीब और पिछड़े समाज के लोगों को इस कानून का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। केवल एक बच्चे के होने पर भी कई और विशेष सुविधाएं प्राप्त होंगी और विशेष कर अगर वह बच्चा एक लड़की है तो और अन्य सुविधाएं मिलेंगी, इसका तात्पर्य ये है की कई दंपति केवल एक बेटी के हो जाने पर परिवार नियोजन अपना लेंगे। समाज का गड़बड़ाया हुआ लिंग अनुपात भी सही स्थिति में आ जाएगा। इस तरह जैसे -जैसे जनसंख्या कम होगी लोगों को बाक़ी सुविधाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति करना और आसान हो जाएगा और देश विकास की तरफ बढ़ेगा।

बढ़ती जनसंख्या का मतलब है संसाधनों की मांग का बढ़ना, ऐसे में सभी जनों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी एक कठिन कार्य हो जाता है। बढ़ती आबादी पृथ्वी के तापमान का बढ़ना, जल और बिजली के संसाधनों का ख़त्म होना,वन-कटाई जैसी समस्याओं का कारण भी होती है।

इससे पहले भी भारत ने जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए। भारत विश्व का पहला ऐसा देश था जिसने 1952 में जनसंख्या नियंत्रण की नीति को अपनाया था जिसके तहत विवाह की उम्र को बढ़ाने के साथ- साथ कॉलेजों में कंट्रासेप्शन की पढ़ाई शुरू कराई । जन्म नियंत्रण क्लिनिक की स्थापना भी की गई थी जिसके बाद 1962 से 1971 के बीच में कुछ ठोस कदम उठाए गए। जन्म दर को 2.5 करने का टारगेट तय किया गया जिसकी वजह से सरकार की काफ़ी निंदा हुई क्योंकि इस टारगेट को मैच करने के लिए लोगों को नसबंदी कराने पर मजबूर किया गया। 1977 के बाद देश में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं और प्रजनन स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना एवं सही शिक्षा उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जाने लगा क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि विकास ही सही गर्भनिरोध होता है।

इस नए कानून को काफी विशेषज्ञों ने एक गलत कदम बताते हुए इसकी निंदा की है। जाहिर है की यह अनुमान लगा पाना अभी मुश्किल है कि इस नियम के ज़्यादा फ़ायदे होंगे या नुकसान लेकिन इसे एक सुचारु रूप से लाया गया कानून माना जा सकता है जिससे निश्चित तौर पर बदलाव देखने को मिलेगा। हालांकि इस नियम के दुष्प्रभाव का तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा।