याद है न, कल दही-चुड़ा है! पता नही, आजकल पटना में लोग दही घर में जमा रहे हैं या डब्बे वाली दही से ही काम चला ले रहे है दही चुड़ा के दिन भी। एक समय होता था, जब खिचड़ी के एक-दो हफ़्ते पहले से ही पटना में दुध बटोरने का कार्य क्रम चालु हो जाता था और बड़े दुख से दुध की बटोरी मात्रा को धीमी आँच पे आधा कर दिया जाता था। उसके बाद उस दुध में 'ज़ोरन' डाल कर कम्बल से ढक कर छोड़ दिया जाता था कम से कम दो दिनों तक। क्या मजाल जो कोई आस पास फटकने की हिम्मत भी कर पाए उस ख़ास पतीले के! शायद किसी के पैरों की कंपन ही 'दुध' को 'दही' न बनने दे। और अगर 'दही' नही अच्छी बनी, तो फिर देखने लायक होती थी, घर की मालकिन का चेहरा, जैसे वो ज़िन्दगी में कितनी बड़ी बाज़ी हार गयीं हों।
पुरे मुहल्ले में मकरसंक्राति के दो हफ़्ते पहले से सारा दिन केवल दही, चुड़ा और गुड़ की ही बातें होती थी। चुडे की भी सारी प्रकारें हमें उसी समय पता चलती थीं, जैसे 'भागलपुर' की 'कतरनी', बहुत मशहुर हुआ करती थी ये उन दिनों. ऐसे भागलपुर शहर ने ही हमें सबसे पहले गोद में उठाया है, जन्म के पश्चात, लेकिन आप अपने जन्म स्थान को शायद ही अच्छे से जान पाते हैं, अगर आपको वहाँ ज़्यादा दिनों तक पलने -बढ़ने का मौक़ा न मिला हो।
अब बची बात गुड़ की! कितना भी फ़ैन्सी चुड़ा हो आपकी थाली में, या हो लाल छाली वाली बेजोड़ दही, लेकिन 'गुड़' अगर असली न हो, तो समझ लीजिए आपकी मकरसंक्राति हो गयी 'गुडगोबर!' आप नहीं बचा सकते हैं इसे किसी भी क़ीमत पर। इसलिए आप लोग चुड़ा और दही से ज़्यादा गुड़ की खरीददारी में समझदारी बरतिएगा, कल की मकरसंक्राति में। ये हमारी ओर से बिहारी दोस्तों के लिए एक छोटी सी सलाह है।
तो भुल जाइए हर ग़म और मशगूल हो जाइए,
आने वाले दो दिनों तक दही-चुड़े की दुनिया में!
खिचड़ी और दही-चुड़ा की शुभकामनाओं के साथ आप सबों के लिए हमारी ओर से एक और उपहार साथ में!
दोनों ही हैं नमक के छिड़काव से बड़े उदास
तरस रहे हैं दोनो ही पाने को गुड़ की मीठास!
पर लाएँ कँहा से दोनों बेचारे,
देसी मिट्टी की गुड़ वाली मिठास
शायद फ़ेसबुक पे ही मिल पड़े,
असली गुड़ की 'वर्चुअल' मिठास!